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आदिवासी समुदाय की प्राकृतिक मातृबोली गोंडी विलुप्ति की कगार पर-बस्तर में बस्तरिया वट्टी गोंडी बोली को सहेज रहे

गोंडी बोली का क्लास उत्तर बस्तर कांकेर में 
हडप्पा सभ्यता से हजारों साल पूर्व की बोली है गोंडी

बस्तर - किसी भी समाज की पहचान उसकी संस्कृति के अलावा उसकी अपनी भाषा बोली से होती है, संस्कृति को सहेजने के अलावा भाषा-बोली को सहेजना भी किसी भी समाज का कर्तव्य है, जी हा हम आदिवासी समाज का प्रमुख गोंडी भाषा की बात कर रहे है जो छह राज्यो में वृहद रूप से बोली जाती है । एक जानकारी के अनुसार लगभग 11 करोड़ आदिवासियों की जनसख्या में 2 करोड़ आदिवासी गोंडी भाषा बोलचाल में इस्तेमाल करते है.

गौरतलब हो कि आधुनिक शिक्षा की आंधी के बीच देश के लगभग छह राज्यों में बोली जाने वाली आदिवासियों की प्रमुख भाषा गोंडी विलुप्त होती जा रही है. गोंडी भाषा का कोई लिखित साहित्य या इस भाषा पर आधारित कोई शिक्षा पद्धति नहीं होने से आदिवासियों की मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों को अपनी ही भाषा सीखने में परेशानी हो रही है.

बस्तरिया वट्टी 
ऐसे समय में भाषा की जागरूकता और सहेजने का बीड़ा उत्तर बस्तर कांकेर जिले में बस्तरिया वट्टी ने उठाया है। समाज के नवयुवकों-युवतियों को संस्कृति की जागरूकता के साथ-साथ गोंडी भाषा का भी ज्ञान बस्तरिया वट्टी दे रहे है। 

आप को बता दे कि बस्तरिया वट्टी का पूरा नाम रामजी गोयहा कुंदा वट्टी है जो मूलतः बस्तर के फरसगांव से तथा सरकारी कर्मचारी है। उत्तर बस्तर कांकेर जिले के सिंगारभाट में 

"कोयतोर आदिवासी गोंडी पल्लो करियाट क्लास" के नाम से गोंडी भाषा सीखने का क्लास लिया जाता है। यह क्लास गोंड़वाना भवन सिंगारभाट में प्रति रविवार को संचालित होता है। 

बस्तरिया वट्टी बताते है कि आदिवासी समाज का प्रमुख भाषा गोंडी है, जो विलुप्ति की कगार पर है, लेकिन समाज इस भाषा को जानने -बोलने के लिए आतुर है। समाज के प्रमुखों द्वारा गोंडी के शिक्षा देने के लिए प्रेरित करने पर उन्होंने उत्तर बस्तर कांकेर जिले स्थित सिंगारभाट गोंड़वाना सामाजिक भवन में गोंडी भाषा की शिक्षा का निःशुल्क क्लास ले रहे है। वट्टी बताते है कि उनके क्लास में हर वर्ग के लोग आते है और गोंडी भाषा का शिक्षा ग्रहण करते है। इसका पूरा श्रेय समाज को जाता है, गोंडी भाषा की क्लास में 100 से अधिक लोग भाषा का ज्ञान सीखते हैं। मुझे बहुत खुशी होती है की में समाज मे गोंडी भाषा को लेकर जनजागरूकता फैला रहा हूँ।


भारतीय संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने राष्ट्रिय कार्यशाला का हुआ था आयोजन

मालूम हो कि सितम्बर 2014 में गोंडी भाषा के मानकीकरण के लिए जानकारों द्वारा विभिन्न राज्यों में बोले जाने वाली गोंडी भाषा के विविध स्वरूपों का मानक  स्वरूप प्रदान कर भारतीय संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की दिशा में राष्ट्रिय कार्यशाला का आयोजन किया गया था. इसकी पहली कार्यशाला दिल्ली के राजघाट में किया गया था कन्नड़ विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा केएम मैत्री के मार्गदर्शन में आयोजित हुई कार्यशाला में सिलेदार मयाराम नेताम (जगदलपुर) सहित देश भर के भाषाविद् शामिल हुए थे  कन्नड़ विवि हम्पी में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में छत्तीसगढ़ राज्य का प्रतिनिधित्व गोंड़वाना समाज युवा प्रभाग के जिला उपाध्यक्ष देवलाल नरेटी कर रहे थे नरेटी बताते है कि गोंडी भाषा को अबतक क्षेत्रीय भाषा ही माना जा रहा हैं,जबकि वास्तव में यह राष्ट्रीय स्तर की भाषा है गोंडी भाषा, व्याकरण फोनेटिक शब्दों द्वारा पूरे देश भर में बोली जाने वाली गोंडी को एकरूपता प्रदान कर उसका मानकीकरण करना हम सबके लिए चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है  किंतु गोंडी भाषा के जानकारों के मार्गदर्शन से गोंडी भाषा के मानकीकरण के कार्य को निरंतर प्रगति मिल रही है।

गोंडी भाषा की उत्पति गोन्ड समुदाय संभू शेक की डमरू की आवाज से हुई थी.

आचार्य मोती रावेन कंगाली से द्वारा लिखा गया किताब कुपार लिंगो गोंडी पुनेम दर्शन में कहा गया है कि गोंडी बोली जो आज की स्थिति में एक भाषा है कि उतपति संभू शेक की गोएन्दाड़ी  (डमरू) की आवाज से हुई है। इसकी पुष्टि गोन्ड समुदाय में प्रचलित गोंडी पाटाओं में आज भी गोन्डवाना राज मे प्राप्त होती है। किताब के अनुसार जब पारी कुपार किरंदुलकोट से लौट कर एरगुट्टा कोट में पेनकमढ़ी(पंचमढ़ी) में तत्कालीन शम्भू शेक व गवरा से प्रथम मुलाकात हुई थी।उस समय पारी कुपार पेनगोदा नदी की बाढ़ में फंस गया था तब शम्भू शेक ने पहांदी वृक्ष की फूल को पत्थर फेंक गिरा कर बाढ़ की भँवर को खत्म कर कुपार को जीवन दान दिये थे। तभी से कुपार को पहांदी पारी कुपार के नाम से शम्भू ने सम्बोधित किये थे।बाढ़ में फंसने से अर्ध मूर्छित हालात में संभू ने चेतना अवस्था मे लाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया। जमीन पर लिटाकर पेट से पानी निकालने के पश्चात भी होश नहीं आने पर सम्भु ने गोएन्दाड़ी को कुपार के कानों में बजाना आरंभ किये। गोएन्दाड़ी की आवाज जैसे जैसे उसके कानों में गूँजते गई वैसे वैसे कुपार की चेतना वापस लौटते गई। गोएन्दाड़ी कि आवाज के सुर लेंग(स्वरों) को समझकर वह वैसा ही आवाज निकालने लगा। पुनेम मुठवा पहांदी पारी कुपार लिंगो ने शम्भू शेक की गोएन्दाड़ी की आवाज को पहचान कर गोएन्दाड़ी वाणी की रचना अपनी जुबान से की है जिसे गोंडवानी कहा है यही गोंडी लेंग है। गोएन्दाड़ी के लेंगसूर(स्वर व्यंजन) को जानकर लेंग से लम्ब और लम्ब से लंबेज बनाने के कारण ही संभू व समुदाय ने कुपार को लिंगो की उपाधि प्रदान की। लिंगो का तात्पर्य प्रथम मानव बोलीभाषा के ज्ञानी।

संभू शेक की डमरू से सर्वप्रथम कुपार को बारह स्वरों का ज्ञान प्राप्त हुआ। ये बारह स्वर इस प्रकार हैं अड़ंग, अड़ांग, इड़ंग, ईडा़ंग, उडंग, ऊडा़ंग,एड़ंग, ऐड़ांग, ओड़ंग, औड़ांग, अमड़ंग और अमड़ांग है। इन स्वरों का उच्चारण कुपार ने अपनी जुबान से किया और अरं, अरां,इरं, ईरां,उरं,ऊरां, एरं,ऐरां, ओरं, औरां, अंगे, अंगा ऐसा व्यक्त रूप दिया। तत्पश्चात इन्हीं बारह स्वरों से उसने ग्यारह कुनों (मात्राओं) का निर्माण किया। वे ग्यारह मात्राएं हैं अरकुन, इरकुन, इराकुन, उरकुन, उराकुन, एरकुन, ऐराकुन,ओरकुन  और औरकुन हैं। अरकुन याने आ की मात्रा, इरकुन याने इ की मात्रा, ईरकुन याने ई की मात्रा, उरकुन याने उ की मात्रा, ऊरकून याने ऊ की मात्रा, एरकुन याने ए की मात्रा, ऐरकुन याने ऐ की मात्रा, ओरकुन याने ओ की मात्रा और औरकुन मतलब औ की मात्रा अमकुन याने अं की तथा अहाकुन याने अ: की मात्रा की रचना कालांतर में पहांदी पारी कुपार लिंगो ने की।

डमरू के बोल से ही कुपार ने गोंडी भाषा के गिनती के अंकों की रचना की है। डमरू  से निकले स्वर से ही उंडुंग, रँडुंग, मुंडुंग, नाडुंग, संडुंग, सांडुंग, एंडुंग, अंडुंग, नंडुंग, पंडुंग धुन से ही उनदी, रण्ड, मुंड, नालुंग, सैयुंग, सारूंग, एरुंग, अरुंग, नरूंग व पदु हैं। गोन्ड आज भी गोंडी पाटाओं में सामूहिक नेंग में इसकी गीत गाते हैं जो गीत इस प्रकार है...सम्भु नीवा गोएन्दाड़ी नेकीना लेंगताल ।
पुटसी वाता, पुटसी वाता मावा गोंडी वडुकाल।।अलंग अला, इलङ्ग इला/उलंग उला ऐलँग ऐला/ओलंग ओला अंगे अमला/पिरसी हत्ता मा गोंडिता मला/इवे पारंड आंदउँग गोंडी सुर लेंग ताल।/पुटसी वाता, पुटसी वाता मावा गोंडी वडुकाल।।

आचार्य मोती रावेन कंगाली जी ने अपने किताब में आगे लिखा है कि गोंडी बोली कि उतपति आदिम काल में संभू गवरा की जोड़ी में हुई है। सम्भु शेक एक उपाधि है जिसे पंच खण्ड धरती राजा स्वामी से सम्बोधित किया जाता है। संभू शब्द गोंडी लेंग की सैयुंग व  भू शब्दों से मिलकर बनी है अर्थात पांच खण्ड धरती अर्थात पांच महाद्वीप का स्वामी से है। धरती पर 88 जोड़ी संभू मादव की जोड़ियों की अधिसत्ता चली है। प्रथम संभू मुला की जोड़ी है जिसे कोसोडूम के नाम से भी गोन्ड समुदाय पहचानते हैं। 88वें जोड़ी संभू पार्वती की है। संभू पार्वती की कालखंड गोन्डवाना खण्ड में घुमंतू समुदाय आर्यों की आगमन के समय की अंतिम जोड़ी है। लगभग 1856 ईसा पूर्व  से पहले की कालखंड बैठती है। जबकि गोंडी लेंग की उत्पत्ति संभू गवरा की जोड़ी के समय की है मतलब 44 वें संभू मादव अर्थात बहुत आदिम है। गोंडी लेंग की लिपि हड़प्पा सभ्यता की सील मोहर में भी

कंगाले दादा ने हड़प्पा सभ्यता की सील मोहरों को भी गोंडी लिपि के द्वारा पढ़ने में सफलता प्राप्त की थी
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गोंडी भाषा संस्कृति कोयापुनेम के जानकार लेखक भाषाविज्ञानी, समाजशात्री अर्थशास्त्री हासपेन आचार्य मोतीरावेन कंगाले ग्राम दुलारा तहसील रामटेक जिला नागपुर महाराष्ट्र के द्वारा अभूतपूर्व लेखन मार्गदर्शन व कार्य किया गया। पूरा गोन्ड समुदाय हासपेन कंगाले दादा की अविस्मरणीय योगदान के लिये गोन्डवाना के महान हस्ती के रूप में सम्मान करती है। हासपेन कंगाले दादा ने हड़प्पा सभ्यता की सील मोहरों को भी गोंडी लिपि के द्वारा पढ़ने में सफलता प्राप्त की है इन लिपियों को आज तक कोई भाषा विज्ञानी ने पढ़ने में सफलता नहीं प्राप्त की है।हासपेन कंगाले दादा ने गोंडी भाषा से सम्बंधित रचनाएं पारी कुपार लिंगो गोंडी पुनेम दर्शन, गोंडी भाषा व्याकरण, गोंडी भाषा शब्द कोष भाग 12, सैन्धवि लिपि का गोंडी में उदवाचन, गोंडी लमक पुन्दना, कोया भिडिता गोंडी सार, तिंदना मांदी ते वरिना पटांग, वृहत हिंदी गोंडी शब्दकोश गोंडी भाषा पर प्रमुख शोध परख रचनाएं हैं। इनके अतिरिक्त कोया कोयतुर कोया पुनेम पर अनेक शोधपत्र अमुल्य रचनायें हैं। हासपेन कंगाले दादा की शोधपरक रचनाओं से पूरे देश विदेश में गोन्ड गोंडी गोन्डवाना पर शोधी, समाजशात्री, वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट किया है। हासपेन कंगाले दादा के बाद अब गोंडी भाषा को संवर्धन करने के लिए पूरे देश भर के गोन्ड समुदाय के प्रबुद्ध लोगों के द्वारा किया जा रहा है। इस बाबत 3 राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित कर लगभग 3000 शब्दों की शब्दकोष तैयार की गई है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में गोंडी बोली भाषा बहुतायत में बोली जाती है। इसलिए समाज के प्रबुद्ध गोन्ड लोगों के द्वारा गोंडी भाषा मे प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा प्रदान की जा रही है। बूम मुदिया लिंगो गोटूल के सिलेदार नारायण मरकाम बताते हैं कि गोंडी एक समृद्ध भाषा है इसकी प्रमाण छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र कर्नाटक उडीसा, मध्यप्रदेश के कई गुफाओं में हमारे पुरखों की कबीलाई गण्ड व्यवस्था से पूर्व  की भित्तिचित्र मौजूद हैं। जिसे हम नतुरकोटा कहते हैं। इन भित्तिचित्र के द्वारा हमारी संस्कृति भाषा जीवनशैली की इतिहास को हम अध्ययन कर रहे हैं। बस्तर लंकाकोट के युवा कोया पुनेमि लेखक माखन लाल सोरी कहते हैं कि गोन्ड गोंडी गोन्डवाना की इतिहास का पूरा राज गोंडी भाषा में निहित है। इसलिए बस्तर के युवाओं के द्वारा भाषा बोलियों की गहन अध्ययन कर इतिहास को प्राप्त किया जाएगा। आज कई स्थानों पर गोंडी स्कूल समाज के द्वारा संचालित किया जा रहा है।जिसमें गोंडी भाषा की लिपि साहित्य का अध्ययन अध्यापन किया जा रहा है।

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