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राह देखता पेसा...

 अश्वनी कांगे , कांकेर 

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए , एक उदारीकरण की नीति और दूसरा ग्राम स्वराज की परिकल्पना . पहला उदारीकरण की नीति के तहत देश के कई कानूनों में शिथिलता लाते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के नाम पर उदार नीति अपनाते हुए कठोर नियमों में बदलाव किए गए और दूसरा बदलाव इस देश में सत्ता का विकेंद्रीकरण है जिसे संविधान संशोधन कर इस देश में लागू किया गया . 1992 में 73 वा संविधान संशोधन अधिनियम लाया गया और उसमें इस लोकतांत्रिक देश में जैसे केंद्र में लोकसभा,  राज्य में विधान सभा, विधान परिषद उसी प्रकार गांव में ग्राम सभा को जगह दी गई और ग्राम सभाओं को शक्ति दी गई कि गाँव के स्तर पर ग्रामसभा सभी तरह के कामकाज को अपनी परंपरा के अनुसार करने के लिए सक्षम है , वह ग्राम स्वराज की परिकल्पना जो गांधी जी के सपनों का भारत है उसे पूरा करने के लिए ग्राम स्वराज की स्थापना हेतु  सबसे निचले स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई और उसी प्रकार से प्रावधान रखे गए और संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के 29 विषयों को ग्राम पंचायत स्तर पर या ऐसा कहें कि ग्रामीण विकास की अवधारणा को लेकर ग्राम सभा को सशक्त  करने के लिए सौपी गई .



संवैधानिक व्यवस्था :- ऐसे में सवाल उठता है कि  पंचायती राज व्यवस्था पूरे देश में 1993 में लागू की गई , लेकिन ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए जब ऐसा प्रावधान किया जा रहा था तब उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243ड.  में कहा गया की यह पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में जहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र अधिसूचित है वहां लागू नहीं होगी l  इसका मतलब स्पष्ट है पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था जैसी कोई भी व्यवस्था लागू नहीं होगी.  पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में जैसे पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो सकती उसी प्रकार से नगरीय पंचायत व्यवस्था नगर पालिका, नगर निगम, नगर पंचायत इत्यादि व्यवस्था भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 240यग. के अनुसार लागू नहीं हो सकता .  लेकिन वर्तमान परिस्थिति में देखने को मिलता है की पंचायती राज व्यवस्था और नगर पंचायत व्यवस्था दोनों ही अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है . यंहा पर स्पष्ट करना जरुरी होगा कि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को पेसा कानून बना कर विस्तार किया गया वंही नगरीय पंचायत व्यवस्था के लिये आज तक मेसा जैसा कानून नही बना , अनुसूचित क्षेत्रों में नगरीय पंचायत वयवस्था असवैधानिक रूप से संचालित है . 

अपवादों और उपन्तारणों के साथ लागू  :- एक दूसरी बात 1993 की पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भी विस्तार करने की बात 243ड. पैरा 4 के उप पैरा (ख) में  विस्तार करने की बात कही गई है ,  यदि संसद चाहे तो अपवादों और उपन्तारणों के साथ विस्तारित कर सकता है यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अनुसूचित क्षेत्रों में जो कि पंचायती राज व्यवस्था लागू होगी वह अपवादों और उपन्तारणों के साथ लागू  होगी.  इसका मतलब है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में सशर्त लागू होगी, जिसके तहत ही देखने को मिलता है  कि सामान्य क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था और अनुसूचित क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था में काफी अन्तर  है और यही अंतर  1996 के पंचायती राज उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार ) अधिनियम 1996 जिसे हम पेसा कानून के नाम से जानते हैं , के तहत देखने को मिलता है . यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि  24 दिसंबर 1996 को यह कानून देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया गया और आज 24 साल बाद भी इस कानून के क्रियान्वयन को देखेंगे तो सही तरीके से नहीं हो पाया है 24 साल इस कानून को हो गए हैं यह कानून अपने युवावस्था में है और ऐसे समय में इस कानून को लागू करने के लिए आज तक नियम नहीं बने और जब नियम नहीं बने हैं तो इसका क्रियान्वयन कैसे होगा यह अपने आप एक बड़ा सवाल है या फिर नियम नही बने है तो ऐसे में वे सभी कानून जो पेसा की धारा 4 से असंगत है संसोधन कर लागू करना चाहिए ,  ऐसा भी नहीं है की पेशा कानून 1996 में लागू हो गए तो कोई बदलाव नहीं हुआ बदलाव हुआ है पेसा  कानून की धारा पांच के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में जो प्रवृत विद्यमान कानून थे उन सारे कानूनों को उनके अपवाद और परिवर्तन/संसोधन   के साथ वहां के रहने वाले जनजातीय समूहों के व्यवहारों से जो असंगत होते हैं ऐसे कानून के प्रावधानों में  शिथलीकरण करते हुए एक  साल के भीतर बदलाव कर लिए जाने चाहिए थे और परिवर्तन व  संशोधन के साथ लागू किया जाना चाहिए था . ऐसे में हम देखते हैं तो आबकारी अधिनियम , पंचायत राज अधिनियम,  भू राजस्व संहिता इत्यादि गिने-चुने 5-6 कानूनों के नियम में ही संशोधन किए गए . 

पेसा और रोफरा :- आप देखेंगे कि 11वीं अनुसूची में 29 विषय हैं उनमें 29 विषयों को पंचायत के माध्यम से गांव में क्रियान्वयन करना है ऐसे में आप समझ सकते हैं कि कितने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है और जो आज तक नहीं हुए हैं यह ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए महती भूमिका निभाने वाला कानून है जिसका नियम आज तक नहीं बना है . छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले बजट सत्र में इसके नियम बनाने की बात कह रही है यह अच्छी बात है  .ग्राम स्वराज की स्थापना में ग्राम सभा के सशक्तीकरण को पेसा और रोफरा - जिसे वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के नाम से जाना जाता है यह दोनों ऐसे कानून है जो एक गांव के पारंपरिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करता  है और उसे सशक्त बनाता है 

जहां भारत के अधिकांश जनसंख्या गांव में बसता है वहां पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए यह दो कानून आने वाले समय में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले हैं , पिछले 27 सालों में अभी तक ग्राम पंचायत को ग्रामसभा से बड़ा माना जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है . ग्राम सभा सर्वोपरि है और उनके द्वारा लिए गए निर्णय व अनुमोदन को क्रियान्वयन करने वाली कार्यकारी समिति ग्राम पंचायत है लेकिन यह बात ग्रामसभा को ही नहीं पता है जागरूकता की कमी है और जागरूकता की कमी के चलते पंचायत की उच्च स्तर की संस्थाओं के माध्यम से निर्देशित और संचालित होती है जो कानून के विपरीत है पेसा कानून की धारा 4 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारतीय संविधान के भाग 9 में किसी बात के होते हुए भी राज्य का विधान मंडल उस भाग के अधीन कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो (क) से (ण) तक  विशेषताओं से असंगत हो. और जब ऐसा है तो विधानसभा में बनने वाले सभी कानून जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होने वाले होंगे उन सभी कानूनों को बनाने के लिए या बनाने से पहले अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम सभाओं से परामर्श / सहमति करना अनिवार्य है 

5वी अनुसूची :- मध्य भारत के 10 राज्यों में सबसे बड़ा अनुसूचित क्षेत्र वाला छत्तीसगढ़ है  जहाँ  राज्य के भू –भाग का करीव 60 प्रतिशत भाग पर फैला है . इन 27 सालों में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जो विकास अनुसूचित क्षेत्रों में होना था वह उस तरीके से नहीं हुआ जिसका नतीजा ही है कि अनुसूचित क्षेत्रों में आए दिन अपनी मांगों को लेकर रैली, धरना, प्रदर्शन या और भी कई माध्यमों से विरोध दर्ज करते रहे हैं . त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में ग्राम सभा के जो निर्णय लेने के अधिकार थे उस अधिकार को कम किया जा रहा है यह इसलिए हो रहा है क्योंकि स्पष्ट नियम नहीं बने हैं . तब सवाल खड़ा होता है क्या पेसा के नियम बन जाएगा तो क्या ग्राम सभाएं सशक्त हो सकेंगी यह आने वाला समय ही बताएगा . जिस तरीके से इस देश में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया वह व्यवस्था आज गांव में व्यवस्था बनाने के बजाय व्यवस्था को बिगाड़ने वाली व्यवस्था बनते जा रही है ऐसे में सवाल खड़े होता है कि आने वाले समय में व्यवस्थाएं सुधरेंगे और ग्रामसभा सशक्त होंगी.  जिस तरीके के जागरूकता होनी चाहिए वह आज भी नहीं है .खेदजनक एतिहासिक सच्चाई  है  कि गाँव गणराज्य की मूल चेतना अंधाधुंध  विकास की यात्रा में अनदेखी रह गयी . खास तौर पर आदिवासी इलाकों में स्थानीय परंपरागत आर्थिक- सामाजिक व्यवस्था और राज्य औपचारिक तंत्र के बीच की विसंगति  गहराती गयी . वहां टकराव जैसी स्थिति बनती गयी है . आदिवासी इलाकों के परंपरागत व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए तथा लोकतान्त्रिक विकास के लिए 5वी  अनुसूची प्रावधानों से शोषण की समाप्ति ,समाज के सशक्तिकरण और आर्थिक विकास का मानक आदिवासी परंपरा और राज्य की व्यवस्था के बीच गहराती विसंगति और बढ़ते टकराव की बात भी सामने आई ,जिसका मुख्य कारण था आदिवासी इलाकों में 5वी अनुसूची के प्रावधानों  का ईमानदारी से अमल ना होना .परन्तु इसमें सबसे बड़ी चुनौती यही है  कि राज्य सत्ता से जुड़े नेतृत्व, विभागीय  अधिकारी एवं कर्मचारीगण, पंचायत  सदस्यों  का  इस कानून- नियम को आत्मसात करने के लिए बड़ा कदम उठाना होगा तथा गाँव के लोग इस परिवर्तनकारी वदलाव को समझे , ग्रामसभा की गरिमामयी भूमिका का एहसास करें और आत्मविश्वास के साथ अपनी व्यवस्था का संचालन  अपने हाथ में ले सकें .

प्रशासन और नियंत्रण :- संविधान की पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित पेसा कानून में प्रावधान किया गया है, जो प्राचीन रीति-रिवाजों और प्रथाओं की एक सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन करते हैं और अपने निवास स्थान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करते हैं। इस अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन के युग में, इस चुनौती का सामना करने के लिए आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक परिवेश को छेड़े या नष्ट किए बिना उन्हें विकास के प्रयासों की मुख्य धारा में शामिल करने की अनिवार्य आवश्यकता महसूस की गई है , अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और पंचायतों को लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने का अधिकार देता है, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन और विवाद समाधान और स्वामित्व के प्रथागत तौर-तरीके, गौण खनिज,  लघु वन उपज का स्वामित्व , आदि;

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन:- पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन न केवल विकास लाएगा,  बल्कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लोकतंत्र भी, और गहरा व मजबूत होगा। इससे निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी। पेसा आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना को कम करेगा और सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग पर बेहतर नियंत्रण होगा। पेसा से जनजातीय आबादी में गरीबी और अन्यत्र  स्थानों पर  पलायन कम हो जाएगा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और प्रबंधन से उनकी आजीविका और आय में सुधार होगा।. पेसा जनजातीय आबादी के शोषण को कम करेगा, क्योंकि वे ऋण देने, शराब की बिक्री खपत एवं गांव बाजारों का प्रबंधन करने में सक्षम होंगे। पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन से भूमि के अवैध हस्तान्तरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तान्तरित भूमि की वापसी किया जा सकेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पेसा परंपराओं, रीति-रिवाजों और जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा।


अश्वनी कांगे

7005692

कांकेर



https://drive.google.com/file/d/1L0cbxXqsfVG13DJfff3P131C8CTcg-p4/view?usp=drivesdkपेसा ड्राफ्ट

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