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अब और अत्याचार हमे गवारा नही है , हक़ आज भी हमारा नही है





सच्चाई तो यही है
की हक़ आज भी
हमारा नही है
लड़ रहे हैं
शोषण करने वालो से
वक़्त आज भी 
हमारा नही हैं
ये मन अब भी 
अडिग है
हारा नही है
लिखे तो हुवे हैं
कई अधिकार
पर आज भी 
किसी को गवारा नही है
ये मन अब भी
अडिग है
हारा नही है
झूट पाखण्ड हावी है
आज भी सच्चाई का
ज़माना नही है
बिछे हैं
कांटो की बिसात
आज भी
किसी ने भी
ये राह
सवारा नही है
ये मन अब भी 
अडिग है
हारा नही है
नही मिली है
इतिहास में हमे जगह
क्रांति तो छोड़ो 
हमारा अस्तित्व भी
इन्होंने स्वीकारा नही है
ये मन अब भी
अडिग है
हारा नही है
पहुँचे तो बहुत है
मुकाम तक
हममे से ही
पर उन्होंने 
खुद ही दिया
सहारा नही है
ये मन अब भी
अडिग है
हारा नही है
केवल प्रदर्शनी का हिस्सा नही
है अस्तित्व हमारा भी
लूटा है सभी ने
पर ये जल जंगल ज़मीन
तुम्हारा नही है
अडिग है और अडिग रहेंगे
ये मन कभी
किसी से हारा
नही है
नोचा है तुमने
खदेड़ा भी हमे
छीना है तुमने
लताड़ा भी हमें
अब और अत्याचार
हमे गवारा नही है
ये मन अब भी
अडिग है
हारा नही है।

मनीष धुर्वे। 

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