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मौन मेरा आभूषण नहीं है..क्योंकि मैं एक नारी हूं....


Pic by fesbook 

मौन मेरा आभूषण नहीं है...

क्योंकि मैं एक नारी हूं,
न किसी से हारी हूं,
अपनी कल्पना में हर रोज,
स्वयं को संवारी हूं,
नदी के जल सी,
बहती हूं अविराम,
अबला नहीं हूं,

क्योंकि मौन मेरा आभूषण नहीं है...

लेकिन कभी परायों ने,
अजनबियों के सायों ने,
तंग किया हमेशा,
चलती हुई राहों में,
कभी शोर में,
तो कभी भोर में,
वेदना मिली,
धरती के हर छोर में,

रीना गोटे की और भी कविता पढ़े

मगर मौन मेरा आभूषण नहीं है...

ख्वाब बिखर गये,
जिंदगी अधूरी सी लगने लगी,
हसीन ख्वाब के पीछे का दर्द,
रोज पीछा करने लगी,
वह स्वयं के ख्वाब से,
मुक्त होना चाहती है,
सपनों के बिखरने का दर्द,

फिर भी मौन मेरा आभूषण नहीं है...

अब मैं भी खुद को,
असुरक्षित महसूस करती हूं,
मैं भी सलामत हूं या नहीं,
इस शंका से डरती हूँ,
हमेशा बेचैनी तलाशती,
मेरे अंदर की वह नारी,
जो हमेशा सुनती है,
आज फिर लुट गई कोई नारी,

लेकिन मौन मेरा आभूषण नहीं है...



रीना गोटे शा. काकतीय पी जी कॉलेज जगदलपुर में व्याख्याता के पद पर कार्यरत है । आदिवासी  युवा कवयित्री है । छत्तीसगढ़ भिलाई में निवासरत है ।


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