'उलगुलान की आवाज' आशीष सिंदराम की एक कविता....
"उलगुलान की आवाज"
उलगुलान की आवाज को हर कोने तक पहुंचाना होगा,
और हर कोने से एक-एक वीरपुत्रों को जगाना होगा ।
तभी यह उलगुलान की मशाल जल पाऐगी,
और बिरसा की क्रांति चारों ओर चल पाऐगी ।
इस मशाल को अब जलाना होगा,
घरों से निकल कर रणभूमि में आना होगा ।
उलगुलान की आवाज को हर कोने तक पहुंचाना होगा ।
आओं बिरसा के दिवानों रणभूमि में आओ,
रणभूमि में आकर विजय तिलक लगवाओ ।
तभी बिरसा की क्रांति सफल होगी,
और आगे निश्चित जीत हमारी होगी ।
समय आ गया है क्रांतिकारी तेवर दिखाना होगा,
पीछे हटने से काम नहीं चलेगा अब तो रणभूमि में आना होगा ।
और,
उलगुलान की आवाज को हर कोने तक पहुंचाना होगा ।
क्रांतिकारियों के वंशज हो तुम अपना जिर्र पहचानों,
आवो युवाशक्ति आवो अपने इतिहास को जानो ।
याद करो कैसे बिरसा ने उलगुलान की मशाल जलाई थी,
याद करो कैसे दुर्गावती ने वीरगति पाई थी ।
याद करो पिता-पुत्र के बलिदान को,
जिसने क्रांति की एक लहर बनाई थी ।
याद करो वीर गुंडाधूर को,
जिसने अंग्रेजों के सामने आफत मचाई थी ।
युवा शक्ति को अब जागना होगा,
चट्टानों से भी टकराना होगा ।
मावा नाटे मावा राज के नारे को सच करके दिखाना होगा ।
उलगुलान की आवाज को हर कोने तक पहुंचाना होगा ।
युवा लेखक
आशीष सिंदराम
जिला कोरबा (छ.ग.)
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