मै घायल बस्तर का दर्द सुनाने आज निकली हुँ -गायत्री की कविता...
मै घायल बस्तर की दर्द सुनाने आज निकली हुँ
इस मातृभूमि की कर्ज चुकाने आज निकली हुँ
बस्तर कभी शांति हुआ करती थी
घर घर में रेला और मादर की थाप गुंजा करती थी
बस्तर की शांति रोती है मरघट की तन्हाई में
मै उस तन्हाई को दूर भागाने आज निकली हुँ ..
मै घायल बस्तर की दर्द सुनाने आज निकली हुँ
मै बस्तर की जनता की संबोधन हुँ
उनके आंसुओ की अधिकारों का उदबोधन हुँ
उस आजादी की पीड़ा का उच्चारण हुँ
मै वो सब अधिकार दिलाने निकली हुँ
मै घायल बस्तर की दर्द सुनाने आज निकली हुँ
बस्तर है जहाँ सब तरफ हरियाली है
बस्तर है जहाँ सुंदर झरनों का पानी है
बस्तर है जहाँ बारूद है सुखे पत्तो में
बस्तर है जहाँ रुदन है बहनो की सिसकीयों में
बस्तर है जहाँ हर घर जलाया जाता है
माताओं बहनों की इज्जत से खेला जाता है
मैं उन सब दर्द मिटाने आज निकली हुँ
मै घायल बस्तर की दर्द सुनाने आज निकली हुँ
जहाँ गुण्डाधुर को पुकारा जाता है
तानाशाही के पैरों तले मासुमो को रौंदा जाता है
बस्तर है जहाँ बलात्कार की रोज कहानी होती है
बस्तर की माटी भी पानी पानी अब रोती है
तीरथगढ की बुन्दे भी मासूम लगने लगती है
मै उन आंसुओं की बुन्दो को ललकार बनाने निकली हुँ
मै घायल बस्तर की दर्द सुनाने आज निकली हुँ
बस्तर है जहाँ सरकारी तंत्र का राज चलता है
बस्तर है जहाँ भारत का संविधान शर्मिंदा है
मै वो कलम नही जो बिक जाऊँ चंद पैसो में
मेरी कलम वचन देती है अंधियारों से लड़ने की
जुल्म शोषण और लाचारी को दूर करने की वचन लीए आज निकली हुँ।
मैं वो सब तकलिफ मिटाने आज निकली हुँ
मै वो घायल बस्तर की दर्द सुनाने आज निकली हुँ। ।
गायत्री सलाम एक युवा आदिवासी कवियत्री है ।
Post a Comment