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भाड़ में जाये ऐसा तथाकथित विकास....


कांकेर:- जंहा हजारों निरीह वृक्ष कट रहे हो,पहाड़ का सीना छलनी कर सड़क निर्माण को अंजाम दिया जा रहा हो, जीव जन्तु जंहा भटकने को विवश हो ऐसे तथाक




थित सरकार तथा प्रशासन  के पर्यटन की संभावनाऐं और विकास के दावे भाड़ में जाऐ। हजारों वृक्षों की हत्या कर कांकेर नगर में स्थित ऐतिहासिक  गढ़िया पहाड़ में सरकार सड़क निर्माण कर पर्यटन की  दृष्टि के नाम पर विकसित और विकास के खोखले दावे कर कर रही ही है।
    गढ़िया पहाड़ के ऊपर ऐतिहासिक-पौरणिक अनेक प्रतिमाए मौजूद है। जिसके दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते है, सरकार और प्रशासन अब लोगों को भगवान के दर्शन के लिए भी गढ़िया पहाड़ का सीना चीर कर सड़क निर्माण कर रही है,क्या सीढियों से चढ़ कर दर्शन नहीं किये जा सकते ? क्या लोग इसे विकास कहेगें? जिले के कई सुदूर अंचलो में अभी भी सडक विहीन है उसे बनाना छोड़ पहाड़ो के अस्तित्व को खतरे में डाल कर सडक निर्माण को अंजाम दिया जा रहा है|
             सरकार का दावा है कि सड़क निर्माण के बाद पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा? जो लोग दूर दूर से दर्शन के लिए आयेंगे वो चंद मिनटों में गाडियों से गढ़िया पहाड़ में चढ़ कर दर्शन कर पाएंगे | लेकिन गढ़िया पहाड़ में जो सडक बनने से प्राकृतिक की संरचना को नुकसान होगा इसका आकलन न सरकार ने लगाई है और न दर्शनरधियो ने, बड़े-बड़े गाड़िया तान कर पहाड़ का सीना चिर कर सडक निर्माण को अंजाम दिया जा रहा है| दरअसल वह सडक निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान है ही नहीं अभी से बड़े-बड़े पत्थर लुडक कर रास्ते में आ जा रहे है वृक्षों की बलि चढ़ाई जा रही है सो अलग ऐसे में सड़क निर्माण से आने वाले दिनों में बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है| अगर पहाड़ो,पेडो,जीव-जन्तुओं का विनाश कर सरकार और प्रशासन पर्यटन और विकास को बढ़ावा दे रही है तो भाड में जाये ऐसा तथाकथित विकास।
           छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद लगातार विकास के नाम पर प्राकृतिक-ऐतिहासिक धरोहरों को उझाड़ने बिगाड़ने की साजिश चल रही है कांकेर जिले में सुरक्षित ऐतिहासिक गढ़िया पहाड़ पर पर्यटन को बढ़ावा देने के खोखले दावे के नाम पर सडक निर्माण कर उसे भी समाप्त करने की सरकारी साजिश कामयाब हो गई है... 
          वैसे भी पूरे प्रदेश में कांक्रिट के जंगलों का विस्तार कर किसे फायदा पहुंचाया गया है यह बताने की जरूरत नहीं है। अव्यवस्थित विकास कर जनता को विकास की चाश्नी पिलाई जा रही है। विकास के नाम पर वृक्षों की बली चढ़ाई जा रही है स्वभाविक है मौसम परिवर्तन का खतरा तो मंडरायेगा और इसकी कीमत आम आदमी चुकायेगा यानि इसका मतलब है करे कोई भरे कोई । 
गढि़या पहाड़ पर रास्ता बनने से पहाड़ तो कमजोर होगा भविष्य में  भूस्लखन का खतरा भी बढ़ेगा। रास्ता बनाने के कारण निरीह वृक्षों की कटाई होगी तो फिर वृक्षारोपण के नाम पर खानापूर्ति होगी। असमाजिक गतिविधियों के तेज होने की संभावना बनी रहेगी । वन्यप्राणियों के सुरक्षा को भी खतरा उत्पन्न होगा ऐसे में दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों का निषेध जरूरी होगा इनके आवागमन से पहाड़ को झटका लगेगा बल्कि वृक्षों की अवैध तस्करी की आशंका बढ़ेगी।

   

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