हे कोयावंश के वीर सपूतों गुण्डाधुर के तुम तीर बनो - गायत्री सलाम
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनो तुम वीर बनो
गुण्डाधुर के तुम तीर बनो
प्यास मिटा दे जो सब का
तुम वो पावन नीर बनों
अपनो की रक्षा के खातिर।
तुम आज यहाँ पे तन जाओ
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनो तुम वीर बनो
तुम्हारी लहू के एक-एक कतरे से।
बुमकाल का आगाज़ करो। ।
उठो जागो देखो
तुम्हारे अपनो का क्या हाल है।।
बहने रोती माताए चिखती
उनकी इज्जत से खिलवाड है।।
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनो तुम वीर बनो ।।
कोयावंश की हरियाली उजड़ गयी।
इन बारुदो के ढेरो में
जहाँ तहाँ अपनो की लाशे बिछी होती है
इन सालो के पत्तो में। ।
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनो तुम वीर बनो ।।
बहुत हुआ अब जुल्म को सहना
हथियार उठा उलगुलान का
एक सुंदर भविष्य का आगाज़ करे।।
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनों तुम वीर बनों ।।
फिर से वो हरियाली हो
वो बच्चों की किलकारी हो।
वो गोटुल में लया लयोरो की
अनुशासन का वो पाठ हो
रीति रिवाज की सीख हो
रेला की वो पाटा हो
मांदरी की वो थाप हो ।।
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनो तुम वीर बनो
कब तक चुप रहोगे तुम
कब तक जुल्म सहोगे तुम
इस माटी की लाज बचाने
तुम सबको अब आना होगा
टाटा जिंदल जो भी आये
सब को दूर भागाना होगा ।।
हे कोयावंश के वीर सपूतों
तुम वीर बनो तुम वीर बनो
गुण्डाधुर के तुम तीर बनो।
इस माटि की सौगन्ध तुमको
मिलकर कदम बढ़ाना होगा
अपनी इस कोयावंश में फिर से
" मावा नाटे मावा राज "को लाना होगा।
गायत्री सलाम की कविता
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