सुकमा हमला : बिना किसी नीति के जवान मौत के मोर्चे पर तैनात!
बस्तर। बिना नक्सल नीति के अति उत्साह में सरकार ने जवानों को मौत के मोर्चे पर तैनात कर रखा है। नक्सल जिनकी पहचान ही नहीं है बस्तर में तैनात जवान उनसे लड़ रहे है! दूसरी ओर सरकार नक्सलवाद खात्मे की झूठी कहानी रोज रच रही है और इस सबके बीच आम आदिवासी पिस रहा है।
सुकमा के ताज़ा हमले में तो बड़ी चूक सामने आई है। जिस माइंस प्रोटेक्ट व्हीकल से जवान जा रहे थे उस वाहन को 2013 में ही काम्बिंग आपरेशन के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था क्योंकि यह वाहन संदिग्ध माओवादियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले आईईडी ब्लास्ट को सहन करने में समर्थ नहीं है।
आपको बता दें कि बस्तर के सुकमा में कल, मंगलवार 13 मार्च की दोपहर सीआरपीएफ के जवानों को लेकर जा रहे माइंस प्रोटेक्ट व्हीकल को संदिग्ध नक्सलवादियों ने बारूदी सुरंग से उड़ा दिया। इस हमले में सुरक्षा बल के 9 जवान शहीद हो गए और 2 जवान गंभीर रूप से घायल हो गए।
वारदात के पहले ही दिन छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यमंत्री हजारों जवान की सुरक्षा में लोक सुराज अभियान के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र सुकमा के इजीरम-भेज्जी सड़क पर एक किलोमीटर की यात्रा कर ये सन्देश देते हैं कि नक्सलवाद समाप्त हो गया है और यहां शान्ति की गंगा बह रही है। इसके ठीक दूसरे दिन 13 मार्च को नक्सली अपनी मौजूदगी दर्शाने के लिए क्रिस्टाराम इलाके में यह हमला करते हैं।
नक्सलवाद के खात्मे और विकास के झूठे दावे करते हुए सरकार जब इस तरह का दिखावा करती है तो इसकी प्रतिक्रिया में नक्सली ऐसी ही किसी वारदात को अंजाम देकर सन्देश देते हैं की वो अभी खत्म नहीं हुए हैं और एक तरह से शक्ति का प्रदर्शन करते है। दूसरी ओर सरकार हर नक्सल हमले के बाद शहीद हुए जवानों के प्रति कड़ी निदा कर बच निकलती है। इस बार भी नक्सल हमले के बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि सुकमा के विकास से नक्सलियों का अस्तित्व खत्म होने के चलते बौखलाहट में यह हमला किया गया है।
सबसे बड़ी बात यह है कि केंद्रीय बलों और राज्य पुलिस में समन्वय की कमी है, जिसके चलते भी ऐसे हमले सफल हो जाते हैं। यही नहीं इस बार पिछले तीन दिनों से आईबी की नक्सल हमले की अलर्ट रिपोर्ट मीडिया में आ रही थी, और अचानक मुख्यमंत्री के दौरे के बाद नक्सलियों ने इस बड़ी घटना को अंजाम दे दिया। यहां यह उल्लेखनीय है कि जिस माइंस प्रोटेक्ट व्हीकल वाहन से जवान जा रहे थे उस वाहन के प्रयोग की 2013 में ही काम्बिंग आपरेशन के दौरान मनाही थी क्योंकि यह व्हीकल नक्सलियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले आईईडी को ब्लास्ट को सहन करने में समर्थ नहीं है।बस्तर जो लगातार सरकार की गलत नीति और नीयत के चलते युद्धभूमि में बदल चुका है, वहां जवानों के पास ढंग से बुलेट प्रूफ जैकेट तक नहीं हैं, और जो हैं वे 18-18 किलो के हैं जिसे भरी गर्मी में टांग कर जवान जंगल में अदृश्य दुश्मन से लड़ रहे हैं। जंगलों में मोर्चा संभाले जवानों को पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं।
सुकमा हमले के बाद अब सरकार पर फिर सवाल खड़े होने लगे हैं कि आखिर सरकार की नक्सल उन्मूल नीति क्या है? या सिर्फ जवानों को जंगल में सिर्फ मरने के लिए छोड़ दिया गया है? खबरों के अनुसार पिछले दो महीनों में संदिग्ध माओवादियों ने 37 लोगो को मार डाला जिसमें सुरक्षा बल के जवान अधिक हैं।
सरकार की नक्सल उन्मूलन की नीति पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। नक्सलवाद के नाम पर निरीह आदिवासियों को मारा जाता रहा है, और असल हमलावर हमेशा बच निकलते आए है। बस्तर में चल रहे इस युद्ध में आम आदिवासी ही शिकार होता है चाहे वो नक्सलवादियों के तरफ से हो या जवानों के तरफ से। सबसे बड़ी बात यह है कि आदिवासियों की जनसंख्या लगातार घट रही है।
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