भू राजस्व संहिता संशोधन- आदिवसियो ने बताया संविधान के विपरीत काला कानून, प्रदेश में हुआ जंगी प्रदर्शन, आदिवासियों के आक्रोश से सहमी सरकार
छत्तीसगढ़ भाजपा सरकार भू राजस्व संहिता अधिनियम में संशोधन कर के चौतरफा घिर गई है, आदिवासियों ने पारित भू राजस्व संशोधन विधयेक के विरोध में सडक कि लड़ाई शुरू कर दी है, आदिवासियों ने इसे संविधान के विपरीत पारित कानून बताते काला कानून बताया है . जानकारी हो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश का 70 प्रतिशत क्षेत्र संविधान के पांचवी अनुसूची क्षेत्र अंतर्ग्रत आता है, सरकार ने आनन फानन में इस विधयेक को पारित कर अब आदिवासी समाज के निशाने पर आ गई है समाज ने सीधे सरकार को संविधान विरोधी बताते हुए संविधान का पालन न करने का आरोप लगाया है.
आज 6 जनवरी को छत्तीसगढ़ प्रदेश के लगभग सभी जिला मुख्यालयों, तहसील कार्यालयों में सर्व आदिवासी समाज के आव्हान पर एक दिवसीय धरना प्रदर्शन रैली निकाल कर आदिवासी समाज ने विरोध जताया है, खबर है कि उत्तर बस्तर कांकेर जिला मुख्यालय में भरी संख्या में आदिवासी समाज ने नेशनल हाइवे 30 जाम कर विरोध प्रदर्शन किया. प्रदेश के मुख्यमंत्री और आदिवासी मंत्रियो का पुतला दहन किया गया.
वही धमतरी जिले में लगभग 2 हजार से ज्यादा कि संख्या में आदिवासी समुदाय एकत्रित होकर पारित संशोधन का विरोध किया गया
वही कोरबा जिले में प्रदर्शन के दौरान बीजेपी मंत्रियो के विरोध करते हुए हांडी बाँध कर फोड़ा गया जो काफी चर्चा में रहा.
इसके आलवा राजधनी रायपुर, और अन्य जिलो में भी विरोध जताया गया
वही सरकार ने डेमेज
कंट्रोल को साधने के लिए राजस्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडे अथवा आदिवासी मंत्री
केदार कश्यप, महेश गागडा संशोधित विधयेक को लेकर प्रेस कांफ्रेस कर सफाई दी कि इस
विधयेक से आदिवासियों कि जमीन को किसी प्रकार का नुकसान नही होगा. वही दूसरी और
बीजेपी से आदिवासी प्रतिनिधियों ने भी इसका विरोध दबे पाँव चालु कर दिया है.
सूत्रों से खबर है
कि सरकार संशोधित विधयेक को अगर जल्द वापस नही लेती है तो सर्व आदिवासी समाज राजधनी
कुच कर जंगी प्रदर्शन करेगा. आदिवासी समाज के इस प्रदर्शन से सरकार बैक फुट पर है
और आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों से लगातार सम्पर्क साध उन्हें मानने कि जुगत में
लगे हुए है.
बस्तर संभाग के सर्व
आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बताया कि राजस्व मंत्री व तीन आदिवासी मंत्रियों द्वारा सयुंक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर
सफाई देते हुये बयान की कड़ी प्रतिक्रिया व्यकत की है। ठाकुर ने कहा कि ये राज्य
सरकार, राजस्व मंत्री व तीन आदिवासी मंत्रियों को सर्वप्रथम भारत का संविधान के
अनुच्छेद 13(3)क,19(5),19(6),244(1),सुप्रीम कोर्ट के फैसले समता का फैसला1997,पी रामी रेड्डी का फैसला1988,कैलाश बनाम महाराष्ट्र 2011का फैसला, कपूर बनाम तमिलनाडु 2001का फैसला का अध्ययन करना चाहिए और निर्णय करना चाहिए कि वे संविधान का पालन
कर रहे हैं या संविधान के अनुसार राजद्रोह का अपराध।इसमें समुदाय के मंत्रियों की
संलिप्तता बेहद गम्भीर व दुखद है।
आदिवासी समुदाय की जमीन सहमति या असहमति से किसी भी सूरत में बिक्री
असंवैधानिक है अहसत्तान्तरिय है। आदिवासी की जमीन गैर आदिवासी व्यक्ति, संस्था, राज्य
सरकार व केंद्र सरकार को अहसत्तान्तरिय है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समता का फैसला
में इसकी पुस्टि कर दी है। अनुसूचित क्षेत्र में केंद्र या राज्य सरकार एक व्यक्ति
के समान है जो कि गैर आदिवासी है। पी रामी रेड्डी का फैसला 1988 में निर्णय पारित कर दिया है कि अनुसूचित क्षेत्र में केंद्र व राज्य सरकार
की एक इंच जमीन नहीं है। इन मंत्रियों को जानकारी होनी चाहिए कि संविधान ही
सर्वोच्च है। कपूर बनाम तमिलनाडु2 2001 में
सुप्रीम कोर्ट ने इसकी व्याख्या कर दी है फिर कैसे तानाशाही कर संविधान विरुद्ध
राजद्रोह कर रहे हैं???संविधान के
अनुरूप ही कानून, विधेयक, अध्यादेश, आदेश बनाया
जाता है संविधान के विपरीत नहीं।*
सर्व आदिवासी समाज की यह मांग है कि राज्य सरकार सर्व
प्रथम इन मंत्रियों की पैतृक व भारी मात्रा में गरीब आदिवासियों की जमीन को खरीदी
गई जमीनों का इन मंत्रियों की सहमति से तीन नहीं हजार गुना दर पर पूरी जमीन खरीदी
कर लें । जो प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे वे पहले सम्पूर्ण जमीन राज्य सरकार को बेच
दें।साथ ही उन विधायकों की जमीन भी खरीदी कर ले जो सदन में इस विधेयक के पक्ष में
मतदान किये हैं। इनको समाज बेनकाब करेगी। सर्व आदिवासी समाज यह घोषणा करती है कि
समुदाय की एक इंच जमीन किसी भी गैर आदिवासी को नहीं बेचेगी और संविधान व सुप्रीम
कोर्ट की सम्मान करती है। पक्ष में मतदान करने वाले विधायकों की पूरी जमीन सरकार
तत्काल सहमति से खरीदे तब तो उनकी मतदान करना सही है।* सरकार व राज्यपाल को
अनुसूचित क्षेत्र के विधिक पारम्परिक ग्रामसभाओं द्वारा पारित असंवैधानिक विधेयक
को तुरंत निरस्त करने के लिए पूरे राज्य से 5 हजार से अधिक ग्रामसभा का आदेश जारी हो चुके हैं फिर भी राज्य सरकार
संविधान विरुद्ध कार्य पर आमादा है। आगामी दिनों में पारंपरिक ग्रामसभाओं के
द्वारा राज्य सरकार के द्वारा संविधान की अवमानना उलंघन करने के एवज में उच्चतम
न्यायालय में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज की जायेगी तथा इन तीन आदिवासी मंत्रियों के
खिलाफ समुदाय विरोधी कार्य की जोरदार असरदार दमदार सबक कार्यवाही की जाएगी ये वही
मंत्री हैं जो इतने दिनों से समाज विरोध दर्ज कर रही है तो समाज मे आकर चर्चा करना
छोड़ वहाँ असंवैधानिक सफ़ाई दे रहे हैं इनकी समुदाय की स्वाभिमान खत्म हो गई है।
सरकार विकास करने के एवज में जमीन लेने की बात कर रही है यह कोरा झूठ है।रायगढ़, सरगुजा, कोरिया, नगरनार, बैलाडीला, लोहण्डीगुड़ा से साफ
हो गई है कि आदिवासी का विकास नहीं हुआ सिर्फ विनाश हुआ है। विकास तो सिर्फ
पूंजीपतियों की हुई है ऐसा विकास का समाज पुरजोर संवैधानिक विरोध दर्ज कर अवैध
करार देती है।
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