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भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक 2017 को आदिवासियों ने बताया असंवैधानिक विधेयक। मुख्यमंत्री रमन सिंह का पुतला दहन कर जताया विरोध



 तामेश्वर सिन्हा 

आदिवासी समाज ने इसे काला कानून बताते हुए भारत का संविधान के अनुच्छेदों के विपरीत राजद्रोह का अपराध बताया है यही नही संविधान का उल्घंन व अनिष्ठा करने पर राज्य सरकार के आई.पी.सी 124 (क) धारा के तहत पुरे राज्य,संभाग व गांव-गाँव में मुकदमा दर्ज करने की बात कही है.


छत्तीसगढ़- छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक 2017 पेश की गई 21 दिसम्बर को विधानसभा में पारित हो गया. राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा कि भू अर्जन की प्रक्रिया सरल होने से विकास में आ रही अड़चनें दूर होंगी. विधेयक के पक्ष में 43 और विपक्ष में 31 मत पड़े.
भू राजस्व संहिता संशोधन 2017 पारित होने के 24 घंटे के भीतर ही प्रदेश में इसका जगह-जगह विरोध होने लगा है. आदिवासी समाज ने इसे काला कानून बताते हुए भारत का संविधान के अनुच्छेदों के विपरीत राजद्रोह का अपराध बताया है यही नही संविधान का उल्घंन व अनिष्ठा करने पर राज्य सरकार के आई.पी.सी 124 (क) धारा के तहत पुरे राज्य,संभाग व गांव-गाँव में मुकदमा दर्ज करने की बात कही है.
आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि छत्तीसगढ़ सरकार का यह संशोधन भारत का संविधान के अनुच्छेद 19(5),19(6), 244(1) 147, 275, 368,13(3) क के प्रावधानों पर सीधा प्रतिघात है यह संशोधन भारत का संविधान की मूल भावना पर सीधा हमला है समाज ने इसे काला नियम बताते हुए कड़े शब्दों में निदा करते विरोध की बात कही है
आप को बता दे कि आदिवासियों की जमीन अहस्तांतरणीय राजस्व है भारत देश की रूलिंग लैंड रेवेन्यू रूल्स 1879,1921,1972 के आधार पर संचालित व नियंत्रित होती है भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुच्छेद 91,92 के तहत एक्सक्लूडेड व परसियली एक्सक्लूडेड एरिया की जमीन आदिवासी  समुदाय की समुदायिक नैसर्गिक सम्पति है यह क्षेत्र नॉन रेगुलेडेड क्षेत्र है.
समाज ने अपने जारी प्रेस वक्तव्य में कहा है कि अनुसूचित क्षेत्रो में न केंद्र सरकार, न राज्य सरकार न ही गैर अनुसूचित व्यक्ति अथवा संस्था की एक इंच भी जमीन नही है तो वाह कौन सी जमीन पर काला कानून थोपना चाहती है. अनुसूचित क्षेत्र में लोक सभा, विधान सभा कोई भी कानून सीधे लागू करने में अयोग्य है विदित है कि भारत का उच्चतम न्यायलय इसकी पुष्टि समता का फैसला 1997 में कर दी है तथा पांचवी अनुसूची की पैरा 2 व 5 में प्रावधान है जो कि अनुच्छेद 368 से बंधित है

सामाजिक संघठन छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते है कि एक और जन विरोधी निर्णय लेते हुए आदिवासियों से जमीन छीनने का रास्ता सरकार ने साफ किया हैं जिससे आसानी से अपने चहेते कार्पोरेट को जमीन उपलब्ध करवाया जा सके।छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता में संशोधन पूर्णतः आदिवासी विरोधी निर्णय हैं 

क्योंकि इससे आदिवासी की जमीनों को जबरन छीनने का रास्ता बनाया गया हैं।यह संशोधन 2013 के केंद्रीय भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास कानून, तथा पांचवी अनुसूची और पेसा कानून के प्रावधानों के विपरीत हैं, क्योंकि पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में बिना ग्रामसभा की सहमति के भूमि अधिग्रहण की प्राक्रिया संपादित नही की जाती परन्तु इस संशोधित प्रावधान से जमीन लेने पर ग्रामसभा की कोई जरूरत नही होगी। इसके साथ ही 2013 के कानून के मुख्य प्रावधान जिसमे सामाजिक समाघात अध्यन और पुनर्वास के प्रावधान से भी बचा जा सकेगा। इस संशोधन से एक सवाल यह भी खड़ा होता हैं कि जब पूर्व ही कलेक्टर की अनुमति से आदिवासी की जमीन खरीदने का प्रावधान विधमान हैं तो इस संशोधन की आवश्यकत्ता क्यो? अलोक ने कहा कि आदिवासी किसान विरोधी निर्णय का पुरजोर तरीके से विरोध करते हुए इसे शीघ्र वापिस लेने की मांग करते है. प्रवधान के वापिस नही लिए जाने के स्थिति में व्यापक जनांदोलन के साथ इसे माननीय न्यायालय में भी चुनोती दी जाएगी।

मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का आदिवासी समाज ने फूंका पुतला। 
आज 23 दिसम्बर को बस्तर संभाग के कांकेर,जगदलपुर,कोंडागांव, दंतेवाड़ा जिलों के सर्व आदिवासी समाज ने भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक 2017 पारित करने को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का पुतला दहन किया गया। समाज मे आदिवासी मंत्रियों को लेकर काफी रोष व्याप्त है।

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