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लोक रंग : दिवाली (देववारी) पर बस्तर में ‘हुलकिंग पाटा’ की धूम




बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इस समय हुलकिंग पाटा यानी हुलकी नृत्य की धूम है। दिवाली जिसे गोंडवानी में देववारी कहा जाता है, के मौके पर उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए यह विशेष सामूहिक नृत्य किया जाता है, जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों शामिल होते हैं। 
आदिवासी शीत ऋतु में पेन (देव) कोलांग मनाते हों तो वर्षा ऋतु में हुलकी कोलांग ज़रूर मनायेंगे। यानी हरियाली/खुशहाली के लिए महोत्सव।
बस्तर में दिवाली के मौके पर होने वाला हुलकी नृत्य। फोटो साभार
पारंपरिक नृत्य
बस्तर में आदिवासियों के अनेक पारंपरिक नृत्य हैं, लेकिन सांस्कृतिक हमले के चलते इन्हें तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है।  हुलकी नृत्य आदिवासियों के महान गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगों के 18 बाजाओं में से 12 बाजा जो कोयतुर लैया लयोर्क के लिए होता है। हुलकी बाजा का निर्माण गुरु मुठवा पहांदी पारी कुपार लिंगो के द्वारा कोयतुर समुदाय के विश्विद्यालय जो विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय है में प्रकृति के अध्ययन के दौरान किया गया था। कुपार लिंगो को एक साथ 18 बाजाओं को बजाने की कला में महारत हासिल थी। इन 12 बाजाओं की बजाने की नेंग नियम गोटूल में प्रशिक्षण के दौरान दिए जाते हैं। 
हुलकी मांदरी एक ही लकड़ी की बनी होती है जो डमरू के आकार की होती है लेकिन आकार में बड़ी होती है। इसे बकरी की खाल से छाया जाता है। बकरी की खाल पतली होने के कारण इसमें मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है। 
हुलकी मांदरी कुम्हार के द्वारा मिट्टी से भी बनायी जाती है लेकिन लकड़ी की अपेक्षा भारी होती है इसलिए कम उपयोग में लायी जाती है। 
बस्तर में दिवाली के मौके पर होने वाला हुलकी नृत्य। फोटो साभार
खुशहाली का प्रतीक
हुलकी सामान्यतः मुरिया गोंड समाज में विशेष खुशहाली के परिप्रेक्ष्य में प्रकृति पुरका के मान सम्मान से सम्बंधित तिहार में ही नाचा जाता है। इसमें एक विशेष लय ताल के साथ नृत्य किया जाता है। एक लाइन महिलाओं (लैयाओं) की जो कि लोहे कि बनी चितकुलिंग हाथ में पकड़े रहती हैं और दूसरी लाइन पुरुषों (लयोरकों) की होती है जो कि हुलकिंग मांदरी पकड़े रहते हैं। 
गीत गोंडी भाषा में ही होता है जो एक पक्ष के गाने के बाद दूसरे पक्ष द्वारा गाया जाता है। हुलकी नृत्य पहांदी पारी कुपार लिंगों की सेवा अर्जी करके ही प्रारंभ किया जाता है।
हुलकी (हुलकिंग गोंडी पाटा) "सिलोप रोले रो रो ले......रोला रो रो ले...."  बोल से ही प्रारम्भ होता है। 
गोंडी हुलकिंग पाटा में प्रथम पक्ष के द्वारा गाई गए गीत के भाव का उत्तर द्वितीय पक्ष के द्वारा गीत के माध्यम से ही लय के साथ सम्मान पूर्वक दिया जाता है। यह हुलकिंग पाटा की मुख्य विशेषता है। नृत्य में गोंडी भाव की प्रधानता होती है। भाव में प्रमुख रूप से प्रकृति पहाड़ कुपार लिंगो झरना आकाश हवा वृक्ष पत्ते फल फूल गोटूल पेन पुरका सिलेदार बेलोसा दफेदार जोड़िया कोटवार मुकवान माजी देवान दुलोसा जलको मलको नार कोतुम मरमिंग गोटूल करियाना आदि के सम्बंध में होते हैं।
योग से भी ज़्यादा लाभदायक!
हुलकिंग नृत्य से कोयतुर समुदाय शारीरिक मानसिक स्फूर्ति प्राप्त करता है। यह योग से भी ज्यादा उत्कृष्ट व लाभदायक होता है। 
हुलकिंग नृत्य से कुपार लिंगो ने बीमारी व मानसिक अवसाद से दूर रहने की शिक्षा गोटूल में कोयतुर को दी थी। हुलकिंग  महिला पुरुष विशेष रूप से पुनांग पंडुम (नवाखानी), चिकडी तिहना दिवाड़ तिहार के दिन तथा गोटूल लयोर्क लैया के द्वारा पुनांग पंडुम के बाद उनकी इच्छानुसार किया जाता है।

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