बीच भंवर में पड़ा कांकेर का विकास.....
रेल नहीं है, इसलिए उद्योग नहीं उद्योग नहीं है, इसलिए रेल नहीं
जिला उत्तर बस्तर कांकेर प्राकृतिक रूप से संपन्न होने के बावजूद उद्योग व्यापार के नाम पर विपन्न है । एक रेल लाइन के अभाव में उसका विकास एक ज़माने से रूका हुआ है। सत्ताधीशों के नुमाइन्दों से जब भी रेल की मांग की जाती है तब रटा-रटाया जवाब मिल जाता है कि कांकेर में कोई बड़ा उद्योग तो है नहीं, जिसके लिए रेल की ज़रूरत हो ।रेल सिर्फ यात्रियों के भरोसे लाभ नहीं कमाती उसे माल ढुलाई भी तो मिलनी चाहिए। इस जवाब को सुनकर कांंकेर निवासी चुप हो जाते हैं। जबकि इतिहास यह बताता है कि छत्तीसगढ़ के शहरों में रेल पहले आई है, तब उद्योग लगे हैं। भिलाई, नांदगांव, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़ सभी स्थानों में पहले रेल आई है, उद्योगों की स्थापना रेल सुविधा मिलने के बाद ही की गई है। अत: यदि कांकेर में भी रेल आ जाएगी तो उद्योग लगाने वाले स्वयं दौड़कर आ जायेंगे ।
सरकारें इस सच्चाई को स्वीकार करने के बदले केवल बहाने बाजी करती हैं। मंत्रियों का यह स्थायी जवाब चुटकुले जैसा ही है कि रेल मांगो तो उद्योगों के नहीं होने का बहाना और उद्योग मांगो तो रेल नहीं होने का बहाना । कांकेर की जनता सीधी सादी है। वह मंत्रियों से नहीं पूछती कि आपके रायपुर में रेल पहले आई या उद्योग पहले आये ? यदि कोई हिम्मत कर पूछ भी दे, तो सरकारी कारिन्दे उसे मुंहज़ोर, ज़बानदराज़, बहसबाज़, हुज्जती, झगड़ालू से लेकर नक्सल समर्थक और राजद्रोही तक घोषित कर सकते हैं लेकिन उसकी बात की सच्चाई पर ध्यान देना किसी भी दशा में उचित नहीं समझेंगे । अत: जनता मौन हो जाती है । ऐसे में जनप्रतिनिधियों का भी तो कुछ कर्तव्य है ? लेकिन कांकेर के दुर्भाग्य से यहां के जनप्रतिनिधि भी आज तक रेल लाइन कांकेर तक लाने के मामले में कभी गंभीर नहीं दिखाई दिए।
उनके चुनावी घोषणापत्रों में अवश्य ही रेल लाने का वादा रहता है किन्तु इन जनप्रतिनिधियों के शब्दकोष में वादा करना एक बात है और उसे निभाना बिल्कुल अलग दूसरी बात है । वे लोग हर वादे को पूरा करने से बचते हैं ताकि अगले चुनाव में पुन: यही मुद्दा उठाकर दुबारा वोट खींचे जा सकें।
कांकेर के प्रतिष्ठित व्यापारी हनीफ शेखानी ने अपने विचार व्यक्त किये कि रेल नहीं होने के कारण हर प्रकार का सामान ट्रकों से आता है, जिसका मालभाड़ा रेल्वे की तुलना में कई गुना होता है। इसीलिए उपभोक्ताओं को वस्तुएं मंहगी मिलती हैं। सेवा निवृत्त प्रोफेसर शकूर साहब ने कहा कि यदि कांकेर में रेल सुविधा होती तो खनिजों पर आधारित सीमेण्ट, बॉक्साइट, मिनिस्टील प्लाण्ट बहुत पहले लग चुके होते, जो आज तक नहीं लगे । इसी तरह कृषि तथा वनोपज पर आधारित मक्का प्रोसेसिंग प्लाण्ट, रेल्वे स्लीपर, आरा मिलें, उसना चावल मिलें बड़ी संख्या में होतीं। कम्प्यूटर व्यवसायी आकाश ठाकुर ने अपना मत व्यक्त किया कि कांकेर को यदि रेल से जोड़ दिया जाता है, तो उसका लाभ इस जि़ले से संलग्र बस्तर के पिछड़े इलाकों को भी मिलेगा । वहां का इमारती काष्ठ सम्पूर्ण भारत में सस्ती दरों पर पहुंचाया जा सकेगा ।
चार राइस मिलों से कोई शहर
औद्योगिक नहीं हो जाता...

यदि जनप्रतिनिधि एवं अधिकारीगण ईमानदारी से प्रयास करें तो कांकेर तथा आसपास वनोपज पर आधारित अनेक कारखाने स्थापित किये जा सकते हैं। औषधि पौधों पर आधारित उद्योग भी लग सकते हैं। बाक्साइट ब्रिक्स के कारखाने भी चल सकते हैं। राइस मिलों की वर्तमान संख्या भी बढ़ सकती है। आटे की पैकिंग तथा दालमिलें लग सकती हैं। कोल्ड स्टोरेज भी स्थापित हो सकते हैं बशर्ते कि बिजली की निरन्तर पूर्ति का प्रबंध हो। इसके लिए शासन को गंभीर होना पड़ेगा। उद्योग लगने से बेरोज़गारी दूर होगी तथा रेल लाइनों को कांकेर तक लाने का आधार तैयार हो जाएगा। किन्तु फिर वही टेढ़ा सवाल सामने आता है कि क्या यहां के नेता तथा अफसर तैयार हैं ?
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