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रक्त के लिए मरता क्या?ना तो करता क्या?

खून माफियां के दलाल -क्या अपको खून की जरूरत है..है तो मात्र पांच मिनट में खून की व्यवस्था करवा देता हुं..लेकिन पैसा लगेगा.
पिडित पक्ष - कितना पैसा लगेगा भाई जितना लगेगा ऊतना दे दुंगा। 
खून माफियां के दलाल -जवाब आता है..एक बाटल खून के पीछे एक से दो हजार रूपये लगेंगे, अगर जान बचाना है तो ले लो....।
पिडित पक्ष - हां  ले लो कितना दुं दो हजार या एक हजार या फिर तीन हजार रूपये। 


अब पीडीत पक्ष मरता क्या?ना करता की तर्ज पर खून के दलालों से खून की बोतले खरीद लेता है... 

खून माफियाओं का गरिबों के साथ खूनी खेल kanker में फल-फुल रहा..
  सरकारी अस्पतालों में सक्रिय
 - खून माफियाओ का गारिबों के साथ खूनी खेल कंाकेर जिला अस्पताल में जमकर चल रहा है, खून माफियां के दलाल मात्र पांच मिनट में खून मिल जाऐगा बोल कर एक से दो हजार रूपये में एक बोतल खून गरिबों के लिए व्यवस्था करतें है, गरिब तबके के लोग जल्दबाजी के चलते व अपनों को बचाने में ये खून की बोतले दलालो से औने-पौने दाम पर ले लेते है, इस खूनी खेल में विभाग के कर्मचारियों की भूमिका भी होती है, ये खून माफियां कंाकेर के जिला अस्पताल में घुमते नजर आऐंगे और उनका बात होता है, क्या अपको खून की जरूरत है..है तो मात्र पांच मिनट में खून की व्यवस्था करवा देता हुं..लेकिन पैसा लगेगा..इस पर सामने पिडि़त पक्ष द्वारा पूछने पर कितना पैसा तो जवाब आता है..एक बाटल खून के पीछे एक से दो हजार रूपये लगेंगे....अब पीडीत पक्ष मरता क्या?ना करता की तर्ज पर खून के दलालों से खून की बोतले खरीद लेता है... इन पर लगाम लगाने के लिए अभी तक कोई विशेष योजना नही बनाई गई है. जिससे ये खून के दलाल कंाकेर के जिला के सरकारी अस्पतालों में अधिकतर देखा जा सकता है..।
   जानकारी के अनुसार यदि किसी को खून की आवश्यकता है और उसकी जेब में पैसा है तो पांच मिनट के अंदर ही उसे खून उपलब्ध हो जाता है और खून देने वाले अक्सर गरिब घर के होते है..और पिडि़त भी .. कंाकेर के सरकारी अस्पतालों में ये खूनी खेल जम के उत्पात मचाया हुआ है। खून के दलाल अस्पतालों में दलाली के काम को अंजाम देने के लिए फंसाने के चक्कर में घुमते रहते है.. जैसे ही कोई मिला ये उसे अधिक दामों पर खून की बोतले बेच देते  है।
अगर कोई रक्त  एक बार देता है तो वो आमदी  तीन महिने में फिर रक्त दे सकता है।  लेकिन ये नही होता ये तो हर सप्ताह रक्त देते है जिनके ऊपर मौत का खतरा भी मंडराता है. रही बा स्टाफ की अगर वो कल्लुराम बताता है तो दुबरा आने में लल्लु राम बतता होगा लेकिन उसका शक्ल तो नही बदलता होगा लेकिन स्टाफ द्वारा बिना कुछ समक्षे फिर रक्त दाता से रक्त निकाल लिया जाता इससे अस्पताल प्रबंधन की भूमिका संदिज्ध रहती है। अगर स्टाफ का जवाब होता तुम तो पिछले बार खून दान किये थे लेकिन ऐसा नही होता स्टाफ द्वारा बीना कुछ सोचे समक्षे फिर रक्त निकाल लिया जाता है। अगर प्रशासन द्वारा जल्द ही इस पर लगाम नही कसा गया तो ये खून माफियां का आंतक सर चढ़ कर खूनी खेल खेलेगा।

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