देश के मुलनिवासीयों का दर्द
सुन वो चंद गद्दार,
तु मेरा घर खाली करायेगा....
तेरा क्या बिगाड़ा है, मैंने!!
जा!! तु बाद में पछतायेगा...
मेरे वजूद से टिका है!! तु,
क्या तु मुझे पाठ पढ़ायेगा...
रो रही है ये धरती,
या पवन रुक जायेगा...
दिल से संजोया इस प्रकृति को,
जो तु मुझसे छीन ले जायेगा....
सुन वो चंद गद्दार,
तु मेरा घर खाली करायेगा....
मेरे टोटम ने हर जीव से,
और जीवों की संरक्षण किया है....
तूने तो हमेशा से ही,
सिर्फ और सिर्फ भक्षण किया है....
घबराहट नहीं है यह मेरी,
चुणौती तुझको देता हूँ...
आ खाली कराने घर, मेरा तु
आखिरी कतरा खून का गिराऊंगा.....
हाहाकार मच जायेगी,
लोग देवासुर संग्राम भूल जायेगा....
ये एक असुर का वादा है,
एक पग धरती भी तेरे नीचे से न बचेगा....
बूंद-बूंद को तु तरसेगा,
तड़प-तड़प कर तु मर जायेगा.....
सुन ले वो गद्दार,
क्या तु मेरा घर खाली करायेगा.......
सुन, मैं शांत क्यूँ हूँ?
मन में ही बौखला रहा....
मैनें अपनो के खुदगर्जी से,
ये दिन भी तो देख रहा....
उन तलचटवे के कारण,
तु भी सेंधमारी कर रहा....
पर अब न चुप रहूंगा,
अपना सीना चिर कहूंगा....
ये जल-जंगल-जमीन हमारी है,
क्या इसे खाली करायेगा????
कसम इस प्रकृति की,
तु एक पग भी न चल पायेगा....
सुन ले, ऐ भीरु गद्दार
तु खाली कराने आयेगा....
पर एक प्रश्न का जवाब दे,
क्या तेरे शहर के बस्ती हमने खाली करायी है....
उद्योग धंधे चल रहे,
क्या हमने बंद करायी है...
ब्रांडेड से ब्रांडेड तुम घिरे हो,
क्या हमने हिस्सेदारी मांगा है....
तुम अपनी जगह,
हम अपनी जगह....
फिर तु नियम बता,
तु मेरे जगह से मुझे बेदखल करेगा....
इस देश के मूलवासी होने के बावजूद,
मुझे बाहरी बतायेगा....
ठप्पा लगा दे किस देश का हूँ,
नहीं तो तु पछतायेगा....
सुन वो चंद गद्दार,
तु मेरा घर खाली करायेगा....
रचनाकार :- धरम मादव कोडापे
(कवि मूलत: बालोद जिला के निवासी हैं)
तु मेरा घर खाली करायेगा....
तेरा क्या बिगाड़ा है, मैंने!!
जा!! तु बाद में पछतायेगा...
मेरे वजूद से टिका है!! तु,
क्या तु मुझे पाठ पढ़ायेगा...
रो रही है ये धरती,
या पवन रुक जायेगा...
दिल से संजोया इस प्रकृति को,
जो तु मुझसे छीन ले जायेगा....
सुन वो चंद गद्दार,
तु मेरा घर खाली करायेगा....
मेरे टोटम ने हर जीव से,
और जीवों की संरक्षण किया है....
तूने तो हमेशा से ही,
सिर्फ और सिर्फ भक्षण किया है....
घबराहट नहीं है यह मेरी,
चुणौती तुझको देता हूँ...
आ खाली कराने घर, मेरा तु
आखिरी कतरा खून का गिराऊंगा.....
हाहाकार मच जायेगी,
लोग देवासुर संग्राम भूल जायेगा....
ये एक असुर का वादा है,
एक पग धरती भी तेरे नीचे से न बचेगा....
बूंद-बूंद को तु तरसेगा,
तड़प-तड़प कर तु मर जायेगा.....
सुन ले वो गद्दार,
क्या तु मेरा घर खाली करायेगा.......
सुन, मैं शांत क्यूँ हूँ?
मन में ही बौखला रहा....
मैनें अपनो के खुदगर्जी से,
ये दिन भी तो देख रहा....
उन तलचटवे के कारण,
तु भी सेंधमारी कर रहा....
पर अब न चुप रहूंगा,
अपना सीना चिर कहूंगा....
ये जल-जंगल-जमीन हमारी है,
क्या इसे खाली करायेगा????
कसम इस प्रकृति की,
तु एक पग भी न चल पायेगा....
सुन ले, ऐ भीरु गद्दार
तु खाली कराने आयेगा....
पर एक प्रश्न का जवाब दे,
क्या तेरे शहर के बस्ती हमने खाली करायी है....
उद्योग धंधे चल रहे,
क्या हमने बंद करायी है...
ब्रांडेड से ब्रांडेड तुम घिरे हो,
क्या हमने हिस्सेदारी मांगा है....
तुम अपनी जगह,
हम अपनी जगह....
फिर तु नियम बता,
तु मेरे जगह से मुझे बेदखल करेगा....
इस देश के मूलवासी होने के बावजूद,
मुझे बाहरी बतायेगा....
ठप्पा लगा दे किस देश का हूँ,
नहीं तो तु पछतायेगा....
सुन वो चंद गद्दार,
तु मेरा घर खाली करायेगा....
रचनाकार :- धरम मादव कोडापे
(कवि मूलत: बालोद जिला के निवासी हैं)
Thank u
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