आजादी के 70 सालो बाद सोनी सोरी ने गोमपाड़ में लहराया तिरंगा...
गोमपाड स्वतंत्र भारत का एक एसा गाँव है जहा सरकार
आज तक नही पहुच पाई है ,जहा सडक, बिजली, पानी मुलभुत सुविधाओं को छत्तीसगढ़ सरकार ने
दरकिनार कर रखा है, सरकार ने इन गांवो में सिर्फ सुरक्षा बलों को तैनात कर रखा जो लगातार
ग्रामीणों पर हिंसात्मक व्यवहार को अंजाम देती है, जहा के ग्रामीणों
को सुरक्षा बलों का सिर्फ खौफ है 70 सालो में पहली
बार यहाँ किसी ने तिरंगा झन्डा फहराया है इससे पहले नक्सली यहाँ काला झंडा फहराते आये
है, गोमपाड़ गांव का नाम हाल ही में मड़कम हिड़मे के कारण चर्चा में
आया था। मड़कम नाम की युवती को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया था। सुरक्षा
बलों पर आरोप लगा कि यह फर्जी एनकाउंटर था। यहां तक कि उसकी लाश को दोबारा निकालकर
पोस्टमार्टम किया गया। इस मामले में हाईकोर्ट ने भी हस्तक्षेप किया था। देश-विदेश से
कई मानवाधिकार संगठनों ने इस पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद से गोमपाड़ पर
सुरक्षा बलों का पहरा सख्त हो गया।
सरकार
की पीडीएस से लेकर अनेक सरकारी विभिन्न योजनाये यहा लागु नही होती है, स्वास्थ्य, शिक्षा
का तो नामोनिशान नही है, है तो सिर्फ सरकारी जुल्मो-सितम, गोमपाड के आदिवासी ग्रामीण
पुरे हिम्मत के साथ लड़ रहे है उनके संघर्षो की कहानी बहुत लम्बी है, सरकार यहाँ लोकतंत्र
की बाहाली को लेकर नाकारा साबित हो चुकी है
यात्रा का उद्देश्य उन लोगों को आईना दिखाना है जो देशभक्ति की आड़ में आदिवासियों का दमन कर रहे हैं और नैसर्गिक खनिज जंगल और पानी बेचकर पूंजीपतियों को लाभ पहुँचा रहे हैं, इन क्षेत्रों के गावों की आबादी घट गई है, कुछ गाँव में चंद वृद्ध बचे हैं, युवा और महिलाएं भयभीत और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, ऐसे समय में दमन और संघर्ष में तपकर सोनी सोरी बाहर आईं और आसपास के बड़े क्षेत्र में पुलिस अत्याचार पीड़ितों के साथ खड़ी हुईं, आज भी गोमपाड़ के रास्ते के अधिकांश गांव आधारभूत सुविधाओं से वंचित हैं, उन गावों को शायद यह भी पता नहीं कि देश आजाद है और उसका एक राष्ट्रीय ध्वज भी है, दूसरी ओर माओवाद के नामपर कुछ लोग बंदूक के आतंक पर आदिवासियों पर अपनी हुकूमत कायम करने की कोशिशों में हैं, अगस्त क्रांति पद यात्रा बस्तर
में जारी हिंसा के बिच शान्ति का एक पैगाम लेकर सोनी शोरी 180 किमी पैदल चल कर गोमपाड
पहुंचा, जहा मडकाम हिडमे को श्रधांजलि देकर 15 अगस्त को तिरंगा ध्वजारोहण किया गया
जहा आस-पास के दर्जनों गांवो के ग्रामीण
इकट्ठा हुए |
"यात्रा को लेकर सोनी सोरी
कहती है कि सरकार ने आजदी के बाद अबतक सिर्फ ग्रामीणों को सुरक्षा बलों का खौफ दिया
है, मडकाम हिडमे को जब सुरक्षा बल के जवानो ने फर्जी तरीके से मारा तो मुझे रास्ते
में ही रोक दिया गया, मुझे यहाँ तक आने नही दिया गया, नक्सली यहाँ काला झंडा फहराते
है,लोकतंत्र यहा जीवित नही है, तब से ही मेने तिरंगा यात्रा कर गोमपाड आने का निर्णय
लिया ताकि निर्दोष आदिवासियों की हत्याओ का न्याय दिला सकू लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों को ज़िंदा रख सकू मेरे आव्हान पर अनेक जनसंगठनो
ने इस यात्रा में जाने का निर्णय लिया और हम गोपपाड में तिरंगा लहरा आये
गोमपाड के ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों पर आरोप लगाया
है कि आस-पास के गांवो में 11 ग्रामीणों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया है |
वही बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी ने तिरंगा यात्रा
में शामिल जनसंगठनो को नक्सली समर्थक करार दिया था, अखबारों में आई बयानों के अनुसार
यात्रा को नक्सली समर्थक बताया था वही सोनी सोरी कहती है की बस्तर आई जी शिवराम प्रसाद
कल्लूरी बस्तर का मुख्यमंत्री बन कर बैठा है, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालो
को नक्सली समर्थक बता रहे है , नक्सलवाद समाप्त करने की बजाय निर्दोष आदिवासी की बलि
चढ़ा रहे है | "
ज्ञात हो कि तिरंगा यात्रा के दौरान सोनी सोरी पर हमले
की भी कौशिश की गई , यात्रा के दौरान सोनी सोरी की न्यायलय में पेशी भी चल रही थी यात्रा
से जगदलपुर पेशी में जाते वक्त उनके साथ बास्तानार घाट पर उनकी गाडी रोकी गई गाली-गलौज
को अंजाम दिया उनके साथ पत्रकार लिंगा कोडोपी, कमल शुक्ला भी मौजूद थे उन्हें पेशी
में जाने से रोका गया
तिरंगा यात्रा जब से दंतेवाड़ा से निकली पुलिस
के लोग तस्वीर खीचते रहे, कइयो ने तो अफवाह भी फैलाई की सोनी सोरी तिरंगा यात्रा से
लौट गई, यात्रा में पांच लोग बाकी है |
जानकारी हो कि तिरंगा यात्रा लगातार अपने लक्ष्य को
लेकर आगे बढ़ रहा था, यात्रा में विभिन्न जनसंघठन के 50 लोग निरन्तर चल रहे थे साथ ही
कई पत्रकार मौजूद थे |
खबर है कि तिरंगा यात्रा को लेकर नक्सलियों के द्वारा
एक आडियो टेप भी जारी किया गया था और तिरंगा यात्रा का स्वागत करने और फाहराने को लेकर
बहिष्कार करने का आव्हान किया गया था, लेकिन सोनी सोरी की तिरंगा यात्रा निरंतर आगे
बढ़ी|
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