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का टूकुर- टूकुर देखत हो? ए हमर छत्तीसगढ़ के परधान मंत्री सडक हावे...


अइसने बनथे छत्तीसगढ़ म परधान मंत्री सडक ह, डोंगरी के पथरा ल ठेकेदार मन ह चोरा के डार दे हावे, आऊ न जाने कतको पाईसा ल खा डारे हे, संगी हो एकर ले तो बढ़िया हमर पेडगरी रद्दा बने रहाय थोडकिन सुकून तो मिलय ये परधान मंत्री सडक म तो पथरा हे पथरा हावे| ये सड़क ल कांकेर के परधान मंत्री सड़क के बड़े साहब ह बनवाये हे निच्चट खाऊ साहब हे रद्दा बर आये पाईसा ल खलो अपन भेभस म भर डलीस.........
प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत जितनी राशी सड़क निर्माण के जरिये सभी गाँव को जोड़ने के लिए केंद्र से मिलती है शायद इस राशी का आधे से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा कांकेर जिले के भ्रष्ट अधिकारी खा जाते है तथा काम में लगने वाला बाकी पैसा यहाँ के कुख्यात ठेकेदार हड़प जाते है कुल मिलाकर जब एक सड़क बन कर तैयार होता है उसके दुसरे दिन से ही उसका मरम्मत का काम  भी शुरू हो ही जाता है। ये भ्रष्टाचार सिर्फ कांकेर जिले में ही नहीं है यह हर जिले में बखूबी चलाया जा रहा है,
कैसे यहाँ के अधिकारी वर्ग और प्रसाशन विगत कई वर्षो से जनता के पैसो को खाने और खिलाने में लगे है, तथा इस खाने खिलाने के कार्य को भली.भांति संचालित करने हेतु लगभग सारे सरकारी निर्माण कार्य सिर्फ और सिर्फ एक.दो भ्रष्ट तथा कुख्यात ठेकेदारों को ही दिया जाता है, इन ठेकेदारों द्वारा लगभग जिले भर के सारे बड़े सरकारी कार्य करवाए जाते रहे है तथा करवाया जा रहा है इन ठेकेदारों द्वारा निर्मित चाहे राष्ट्रीय राजमार्ग हो,या ग्रामीण सड़क हो इनमे बनने वाले पुल हो या  अन्य विभागों से मिले निर्माण कार्य हो सभी की स्थिति बद से बदतर रही है। इन सारे कार्यो की गुणवत्ता को अगर परखा जाये तो इन कार्यो में निर्माण तकनीक से लेकर सीमेंट मुरुम पत्थर लोहे के छड़ इत्यादि की गुणवत्ता और मात्रा में भी काफी हेर फेर किसी भी निर्माण स्थल पर मिल जाएगा। 
2012 के आकड़े के अनुसार छः हजार करोड़ से अधिक खर्च होने के बावजूद भी राज्य में प्रधानमंत्री सड़कों की स्थिति बद से बदतर हो कर रह गई है।आदिवासी क्षेत्रों में प्रधानमंत्री सड़कों का बुरा हाल है। राज्य और केंद्र  सरकार का इन क्षेत्रों के प्रति नजरिया मात्र लूट मचाना है। पूर्व में हुई जांचो में नेशनल क्वालिटि मानिटर ने स्वयं अपनी जांच में पाया था की बस्तर में 75 प्रतिशत, दंतेवाड़ में 70 प्रतिशत, कांकेर में 51 प्रतिशत, सरगुजा में 68 प्रतिशत सड़कें तथा नारायणपुर में 85 प्रतिशत सड़कें गुणवत्ता के अनुरुप नहीं हैं।
  बस्तर मे 348 करोड़, दंतेवाड़ा में 69 करोड़, कांकेर में 86 करोड़, नारायणपुर में ‍19 करोड़ तथा सरगुजा जिले में 430 करोड़ अर्थात कुल 952 करोड़ के लगभग रुपयों की रोड़ गुणवत्ताहीन बनकर रह गई गयी। विभिन्न जांचों व निरिक्षणों के बावजूद भी किसी भी दोषी के खिलाफ आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये। यही सब कारण है कि केंद्र सरकार के पूरे सहयोग व प्रयासों के बावजूद भी आदिवासी अंचल विकास की उंचाइयों को नहीं छू पा रहा है तथा नक्सलवाद के दलदल में फंसता जा रहा है।
वर्ष 2005 से मार्च2011 तक सरकार विभिन्न ठेकेदारों को लगभग ‍12 हजार 595 लाख रुपये एडवांस में बांट चुकी है लेकिन ठेकेदारों ने गुणवत्तापूर्ण काम किया भी है कि नहीं इस ओर ध्यान देने की जरुरत महसूस नहीं की।


वही पुराने सालो के आकड़ो में नजर डाले तो प्रधान मंत्री सडक योजना में नक्सल क्षेत्र में आधे से ज्यादा सडक ही नहीं बन पाए है 

कुल स्वीकृत सड़कें 5,320
लंबाई 25,500.6 किमी
स्वीकृत पुल-पुलिया 36,583
पूर्ण सड़कों की संख्या 4,151
पूर्ण सड़कों की लंबाई 18,906 किमी
पूर्ण पुल-पुलिया 21,355
निर्माणाधीन सड़कें 786
सड़कों के लिए ठेके नहीं हो सके 92
भारत सरकार से अब तक
स्वीकृत रकम 6,479.86 करोड़
कुल प्राप्त रकम 4,857.49 करोड़
कुल व्ययः 4,663.82 करोड़
स्रोत: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और राज्‍य सरकार



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