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असम्भव हो जाएगा कांकेर से आगे जाना तेलिन घाटी की हालत खस्ता





राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 पर स्थित तेलिन घाटी की जिसे केशकाल घाट भी कहा जाता है हालत दिन-ब-दिन खराब से खराब होती जा रही है, जिसके कारण बार-बार घाट में जाम लग जाता है और सैकड़ों वाहन दोनों ओर असहाय से खड़े रह जाते हैं। रात में यदि जाम लग गया, तब तो ऊपर वाला ही मालिक है। सुबह तक कुछ नहीं किया जा सकता। महीने में कई रातें घाटी में जाम के नाम पर बेकार होती रहती हैं जिनमें न केवल यातायात प्रभावित होता है बल्कि क्षेत्र के व्यापार-व्यवसाय का भी बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है। वैकल्पिक मार्ग कोई है नहीं। जो पगडण्डी वाले मार्ग हैं भी, उन्हें सुधारने या पक्का करने में न तो राज्य सरकार कोई रूचि लेती है और न नेशनल हाइवे डिपार्टमेण्ट ध्यान देता है । 

ज्ञातव्य है कि केशकाल घाटी न केवल प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्यटन स्थल है बल्कि यह उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत की प्राकृतिक विभाजन रेखा पर भी स्थित है। इसी घाटी से महानदी कछार तथा गोदावरी कछार अलग हो जाते हैं। सरल शब्दों में कहा जाय तो घाट के ऊपर केशकाल तथा उससे आगे के नदी नालों का जल विभिन्न नदियों से होता हुआ गोदावरी अर्थात् दक्षिण की गंगा में जाता है।  तथा घाट एवं उससे नीचे का जल विभिन्न नदियों से होकर महानदी में जाता है। इसी केशकाल घाटी के रास्ते से प्रतिदिन हज़ारों वाहन दक्षिण भारत के चार राज्यों-आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल-को जाते हैं। यह मार्ग दक्षिणी भारत के विभिन्न स्थानों के लिए शार्टकट रास्ता है। यदि यह रास्ता लम्बे अरसे के लिए बन्द हो गया, तो वाहनों को विशाखापटनम अथवा नागपुर के सड़क मार्ग से जाना पड़ेगा, जिसमें समय तथा ईंधन दोनों ही दुगुने लगेंगे। इसीलिए यात्रियों तथा गाड़ी चालकों द्वारा केशकाल घाटी का रास्ता पकड़ा जाता है, जो अत्यंत सकरा होने के कारण हज़ारों वाहनों के यातायात का दबाव नहीं झेल पाता। घाट के सकरे मार्ग पर कोई भी वाहन यदि दुर्घटना वश अथवा यांत्रिक त्रुटि से राह में खड़ा हो जाता है, तो अक्सर बाजू में इतनी जगह भी नहीं बचती कि छोटे वाहन भी निकल सकें। ऐसी स्थिति में दोनों ओर सैकड़ों वाहन खड़े होकर महाचक्काजाम की स्थिति पैदा कर देेते हैं। कहीं से जेसीबी क्रेन का जुगाड़ हो जाए तो कुछ घण्टों में जाम खुल जाता है और यातायात बहाल हो जाता है अन्यथा रात भर वाहन वहीं खड़े रह जाते हैं। डॉ. रमनसिंह जब भी इधर आते हैं, तब आश्वासन देते हैं कि घाट के लिए क्रेनों की स्थायी व्यवस्था शीघ्र की जाएगी। उन्हें शासन करते दस वर्ष हो गए पर उन्होंने इस दिशा में कुछ नहीं किया। वाहनों की तादाद दिनरात बढ़ रही है तथा जाम भी बढ़ रहे हैं। घाट के जंगल अवैध कटाई के शिकार हो रहे हैं, जिसके कारण कभी भी घाट के रास्ते ऊपर से चट्टानें गिरने से बन्द हो सकते हैं और तब बस्तर या दक्षिण भारत जाने वालों को कांकेर से आगे जाना असंभव हो जाएगा । 



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