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उज्ज्वला योजना: चूल्हे पर भारी पड़ गयी पेट की आग



तामेश्वर सिन्हा
बस्तर।  "200 रुपए में गैस सिलेंडर मिल रहा था इसीलिए ले लिया। एक महीना चला फिर खत्म हो गया, 1000 रुपए भरवाने का लगता है, इतना महंगा में कौन भरवाएगा, वैसे भी 20 किमी दूर गैस सिलेंडर भरवाने जाना पड़ेगा, वहां भी कभी गैस मिलता है कभी नहीं मिलता है। इसीलिए पेटी में बंद करके रख दी हूं।” यह बयान बस्तर की आदिवासी महिला पुनीता कुरेटी का है। वह आगे कहती हैं कि "मेरे घर के बाहर में बहुत बड़ा जंगल है, बाहर निकलती हूं लड़की मिल जाती है उसी से खाना बना लेती हूं, गैस सिलेंडर का खाना अच्छा नहीं लगता था लकड़ी का खाना अच्छा लगता है।"

छत्तीसगढ़ के  बस्तर क्षेत्र में स्थित कांकेर जिले के  कुरसेल गांव में रहने वाली पुनीता कुरेटी को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर मिला था। लेकिन उन्होंने अब उसे चूल्हा समेत पेटी में बंद करके रख दिया है। पुनीता ऐसी अकेली नहीं हैं। पूरा गांव उन्हीं के रास्ते पर है। पीएम मोदी की महत्वपूर्ण उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर तो बांटे गए लेकिन लाभार्थियों के पास सिलेंडर भराने का पैसा न होने के चलते पूरी योजना ही औंधे मुंह गिर गयी है। दरअसल सिलेंडर इतने महंगे हैं कि दो जून की रोटी के जुगाड़ में अपना सब कुछ लुटा देने वालों की आर्थिक क्षमता ही नहीं है कि वो उसे भरा सकें। लिहाजा रिफलिंग उनकी सबसे बड़ी समस्या बन गयी है। हालांकि सब्सिडी की राशि वापस मिल जाती है, लेकिन लाभार्थियों का कहना है कि पहले उतनी रकम हाथ में होनी भी तो चाहिए।

चूल्हे का इस्तेमाल।

पीएम मोदी अपनी योजनाओं के बखान में "उज्जवला योजना" को सबसे ऊपर रखते हैं लेकिन  दावे के विपरीत छत्तीसगढ़ में यह योजना का चूल्हा ठंडा पड़ गया है। केंद्र का दावा है कि योजना में शामिल 80 फीसद लोग रिफिलिंग करा रहे हैं। जबकि जमीनी पड़ताल में यह बात सामने आयी है कि राज्य के 27 में से 22 जिलों में केवल 20 से 25 फीसद लाभार्थी ही दूसरी बार सिलेंडर लेने गए। 75 से 80 फीसद लोगों द्वारा रिफिलिंग नहीं कराने पीछे सिलेंडरों की कीमत का अधिक होना प्रमुख वजह बतायी जा रही है।

कांकेर जिले की बात करें तो यहां 22 प्रतिशत लोग इस योजना के तहत बांटी गई गैस की रिफिलिंग करा रहे हैं। जिन लोगों को  एक महीने में एक हजार रूपए मजदूरी मयस्सर नहीं है उनसे 1000 रुपये की गैस रिफिलिंग की उम्मीद करना कितना बेमानी होगा इसे किसी को बताने की जरूरत नहीं है। वैसे भी किसी लाभार्थी के लिए चूल्हे से ज्यादा पेट की आग के सवाल को हल करना जरूरी है।

"बड़े तेवड़ा की मधु मंडावी कहती हैं गैस जो मिला था नवम्बर में खत्म हो गया है, मनरेगा में हमेशा काम नहीं मिलता और उसकी मजदूरी भी लंबे वक्त तक बकाया रह जाती है। ऐसे में हम लोग गैस सिलेंडर भरवाएं या बच्चों का पेट भरने का जुगाड़ करें।"

विभाग के अधिकारी भी इस बात को नहीं छुपाते हैं। पूछने पर बस्तर के सुकमा और दंतेवाडा जिले के खाद्य अधिकारियों ने बताया कि जितने गैस सिलेंडर वितरित किए गए हैं उनमे से मात्र 10 प्रतिशत लोग ही दोबारा रिफलिंग करा रहे हैं। सुकमा में 17860 लाभार्थियों को गैस वितरण किया गया था, लेकिन उनमें से मात्र 10 प्रतिशत लोग रिफिलिंग के लिए लौटे।  यही स्थिति दंतेवाड़ा की है। जिला खाद्य अधिकारी घनश्याम सिंह कंवर ने बताया कि मार्च 2018 तक 16 हजार कनेक्शन दिए गए थे। इनमें से 6000 ने रिफिलिंग कराया है। इसके बाद नई नीतियों के तहत कुल 26 हजार से अधिक गैस सिलेंडर बांटे गए हैं। यही हाल बस्तर के तमात जिलों के हैं जहां लाभार्थियों को बांटा गया गैस सिलेंडर दोबारा रिफिलिंग के लिए नहीं आया।

उज्ज्वला से करोड़पति हो गए उद्योगपति

ऐसा नहीं है कि उज्ज्वला से किसी को लाभ नहीं हुआ। एक तबका ऐसा है जो सरकार की इस स्कीम से मालामाल होग गया। एक जानकारी के अनुसार गैस सिलेंडर देने वाली कंपनी और एजेंसियों को 2975 रुपए की दर से हर गैस सिलेंडर पर भुगतान किया गया है। आंकड़ों की बात करें तो छत्तीसगढ़ में 26 लाख 60 हजार 705 लाभार्थियों को गैस सिलेंडर वितरित किया गया है। उस हिसाब से सात अरब से भी ज्यादा रुपया गैस कंपनी और एजेंसियों को गया है । वहीं 200 रुपए प्रति लाभार्थी के हिसाब से 53 करोड़ से भी ज्यादा वसूले गए हैं। इन आंकड़ों से प्रतीत होता है कि उज्ज्वला योजना अमीरों की जेब भरने के लिए लायी गयी है, और लोग आज भी चूल्हे फूंक रहे हैं।

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