मैं और मेरी शादी:- सवाल नम्बर 1 - हिजाब क्यों करती हूं?मुसलमान हो गई हूं?
1. हिजाब क्यों करती है???
2. मुसलमान हो गई है??
3. 26 की हो है शादी नई कर रही?
4. बाल क्यों कटाई??
5. कोई लड़का पसन्द करेगा ऐसे बालों में?
6. तू वेट कम क्यों नहीं करती??
7. ऐसे में शादी के लिए दिक्कत होती है बाद में...
8. कोई लड़का ऐसी लड़की नहीं चाहेगा..
9. ये जो हर जगह बेबाक रहती है...इतना बेबाक होना एक लड़की के लिए सही नहीं है...
10. सूट क्यों नहीं पहनती?
11. सही उम्र में शादी हो जानी चाहिए....
12. और ये पढ़ाई कब तक चलेगी??
13. शादी के लिए भी नहीं बढ़ाएगी बाल??
14. शादी के बाद भी बाल नहीं बढ़ाएगी?
15. दुल्हन बनेगी तो कैसी दिखेगी छोटे बाल में???
16. शादी के बाद सिंदूर कैसे लगाएगी??
17. शादी के बाद भी ऐसे ही कपड़े पहनेगी??
18. तू लड़कियों जैसे क्यों नहीं रहती??
19. तुम tom boy हो....
इस तरह के तमाम सवालों और बातों से आज कल सामना होता है.मेरा पहले अजीब लगता था। लेकिन अब हंसी आती है।शायद हर लड़की का सामना होता होगा? वे सवाल भी पूछे जाते होंगे जिनका उल्लेख यहां नहीं है। फिर भीमैंने सोचा है कि हर रोज़ एक दो सवालों पर लिखूंगी।सबकी सलाह,सबके सुझाव, सबका प्रेम, सबकी आलोचनाएं, सबके विचार सादर आमंत्रित हैं।
सहमती या असहमती दोनों ही स्वीकार्य होंगी।
आज सवाल नम्बर 1 व 2 पर बात करते हैं ....
हिजाब क्यों करती हूं?मुसलमान हो गई हूं?
तो भई हिजाब इसलिए करती थी क्यों कि मैंने सर मुंडवाया था। किसी मेडिकल प्रॉब्लम के कारण। इसका किसी भी तरह के धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है मेरे दोस्तों.
सबको पता तो है कि मै किसी धर्म को नहीं मानती.फिर धर्म के कारण पर्दा प्रथा जैसी दकियानुसी परंपरा की अनुयायी कैसे हो सकती हूँ?पर्दा , पुरुष प्रधान समाज की पैदाइश है और पुरूष प्रधान समाज का तथाकथित आदर्श.लड़कियों.इस पर्दे के कई सारे राजनैतिक कारण हैं । उसे समझें.हमारे लिए हमे ही खड़ा होना होगा और कोई नहीं आएगा। आप धर्म धर्म कर के इन रूढ़ियों को मानेंगी और आने वाली लड़कियों की जिंदगियां दूभर होती जाएंगी।
घूंघट, नक़ाब, हिजाब ये सब चीजें लड़कियों के साथ हो रहे अनाचार के आंकड़े क्या कल कम कर सके थे जो आज कर लेंगे।
अगर ईश्वर ने महिला और पुरुष में भेद किया है।
अगर उसने महिलाओं के लिए पर्दे को ज़रूरी कहा है , उसे एक विवाह में सीमित किया है। और वहीं पुरुषों के लिए कोई पर्दा नहीं और एक पुरुष के महिलाओं से विवाह कर सकता है। तो आपका ईश्वर तो दुअभेदी करता है।
वो भेद करता है दोनों में...ये कैसा ईश्वर है?
प्रकृति ने हम सबमें कोई भेद नहीं किया। ये जो भेद हैं वो हमारे ही द्वारा गढ़े गए हैं। चाहे वह भेद धर्म का हो, जाति का हो ,धन का हो...या लिंगों का हो। हम इन भेदों को मिटायेंगे तब ये भेद मिटेंगे. बाक़ी भेंड़ चाल तो हम सदियों से चलते आये हैं...
-रोशनी बंजारे "चित्रा"
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