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प्रकृति पर मत करो घातक प्रहार वरना वह करेगी तुम्हारा नरसंहार- रीना गोटे

प्रकृति पर मत करो घातक प्रहार
वरना वह करेगी तुम्हारा नरसंहार- रीना गोटे

उसने दिए जल, जंगल और जमीन जैसे अनगिनत उपहार,
फिर कैसे भूल रहे हो तुम उसका यह उपकार.
बारूद लगाकर पहाड़ पर्वत उड़ाकर,
कर रहे प्रकृति की सघनता को बर्बाद
खोद रहे हो तुम स्वयं की कब्र
क्या नहीं है तुम्हें अपने जीवन की परवाह?
प्रकृति पर मत करो घातक प्रहार
वरना वह करेगी तुम्हारा नरसंहार

बहती है यहाँ इंद्रवती,दूध नदी की अविरल धार,
झील-झरनों जैसी अवयव है यहाँ के जीवन का आधार.

इनके बहाव को रोक तुमने बांध बना डाले हजार,
झिरिया का पानी पीने लोग आज भी है विवश और लाचार.
प्रकृति पर मत करो घातक प्रहार वरना वह करेगी तुम्हारा नरसंहार
धरा के गर्भ में छिपे हैं खनिज और प्राकृतिक संपदाएँ अपार,
जिसे पाने की लालच में धरती की कोख पर करते हो चोटिल प्रहार.
पूंजीवादी धरती को चीरकर तूने भवन, कारखानें बनाए और धन संपत्ति जुटाई बेशुमार,
फिर उसके बाढ़, सूखा और भूकंप जैसे प्रकोप से मचाते हो हाहाकार.
प्रकृति पर मत करो घातक प्रहार वरना वह करेगी तुम्हारा नरसंहार .

ऐ कृत्रिमता के गुलाम मनुष्य जो किया तुमने प्रकृति संग छेड़छाड़,
तो वह प्राकृतिक आपदाओं का देगी तुम्हें पुरस्कार,
प्रकृति आपसे करती है प्यार और उसे भी चाहिए आपका प्यार.

इसी में छिपा है मानव जीवन का आधार,
प्रकृति पर मत करो घातक प्रहार वरना वह करेगी तुम्हारा नरसंहार.

रीना गोटे शा. काकतीय पी जी कॉलेज जगदलपुर में व्याख्याता के पद पर कार्यरत है । आदिवासी  युवा कवयित्री है । छत्तीसगढ़ भिलाई में निवासरत है ।





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