आदिवासी, दलित समुदाय पर जातीय टिप्पणी पर कार्यवाही के आड़ में प्रशासन की पक्षपात से समाज में उग्र आक्रोश
बस्तर :- आदिवासियों पर आपत्तिजन, अनर्गल टिप्पणिया लगातार हो रही है जो
थमने का नाम ही नही ले रहा है , हाल ही में फुलमान चौधरी (आदिवासी
मामलों के स्थायी मंच के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) संयुक्त राष्ट्र संघ में
आदिवासी मामलों के उपाध्यक्ष फुलमान चौधरी ने भी बस्तर का दौरा करने के बाद आरोप
लगाया है कि कि बस्तर में आदिवासियों के मानवाधिकार व संवैधानिक प्रावधानों का
उल्लंघन हो रहा है, जिसे
भाजपा के प्रवक्ता सच्चीदानंद उपासने ने एक बयान में उनके दौरे को नक्सलवाद से जोड़
दिया था?
ज्ञात हो
कि दिसम्बर 2016 में भाजपा
प्रवक्ता विश्नीवादिनी पांडे द्वारा एक निजी चैनल के डिबेट के लाइव कार्यक्रम में
बस्तर के आदिवासी महिलाओं को लेकर लाइव डिबेट में आपत्तिजनक बाते कही थी, जिससे
आदिवासी समाज में काफी आक्रोश व्याप्त था पुतला दहन, धरना प्रदर्शन से लेकर सडक तक लोग उतर
चुके थे लेकिन कार्यवाही शून्य हुआ, यही नही बिलासपुर में एक निजी कोचिंग
चला रही महिला संध्या अग्रवाल ने एससी, एसटी, ओबीसी के आरक्षण को लेकर सामाजिक
अनर्गल टिप्पणी करने का मामला भी प्रकाश में आया था विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त
जानकारी के अनुसार सन्ध्या अग्रवाल पर कोई विधिक कार्यवाही नहीं होने के बाद अब
चुपचाप उसी संस्था में अध्यापन करवा रही है। विदित हो कि बलात्कार के दोषी
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम जिसे माननीय न्यायालय ने बलात्कार का दोषी
पाया है एक फिल्म बना था OMG जिसमे
आदिवासियों को लेकर आपतिजनक द्रश्य थे जिस पर भी पुरे समाज ने सडक तक लड़ाई लड़ी थी, विदित हो
कि बस्तर में एक लेखक रुद्र नारायण पाणीग्राही पर भी आदिवासी समाज की
लड़कियों को लेकर एक अखबार में आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप था जिस पर समाज को गहरा
आघात हुआ था हालंकि उसने बाद में लिखित माफ़ी मांगा था. समाज पर आपत्तिजनक टिप्पणी
करने का लिस्ट बहुत लम्बी है लेकिन कार्यवाही एक पर भी नही , अधिकांश
मामले आदिवासी महिलाओं लड़कियों के ऊपर की गई फिर भी महिलाओं की महत्ता के आड़ में
राजनीति चमकाने वाली सरकार की कथनी करनी में अंतर दिखाई दे रही है एक सूत्र के
अनुसार बस्तर सरगुजा सम्भाग के आदिवासी समुदाय में सरकार की भूलभुलैया कार्यवाही
से गहरी आक्रोश है जिसका असर ताजा मामलों में त्वरित प्रतिक्रिया में साफ दिखाई दे
रहा है । ताजा मामला सोशल मीडिया फेसबुक में पायल दास नामक आईडी से आदिवासी समाज
के ऊपर बेहद गंभीर जातीय आपत्तिजनक टिप्पणी की गई है, ज्ञात हो
की 6 सितम्बर
को आदिवासी समाज का बस्तर बंद था, उसी दिन एक आदिवासी छात्रा के पोस्ट पर
पायल दास नामक आईडी से अभद्र टिप्पणी करने तथा समाज को गाली देनें अपमानित करने को
लेकर बस्तर के विभिन्न जिलो और ब्लाक तहसीलों में एफ,आईआर दर्ज
करवाया गया है. आज कांकेर जिले के विभिन्न स्थानों पर पायल दास की पुतला दहन करने
की भी खबरें आ रही हैं विदित हो कि इस तरह लागातर सामाजिक टिप्पणी से आदिवासी समाज
में काफी आक्रोश है.
लगातार आदिवासी समाज के ऊपर आपत्तिजनक टिप्पणी हो रही है लेकिन कार्यवाही
मात्र खाना पूर्ति तक सिमित है. आखिर ये कौन लोग है जी आदिवासी समाज पर लगातार
अनर्गल टिप्पणी कर आपत्तिजनक बाते कह रहे है और इन पर कोई कार्यवाही नही हो रही है
इसलिए ऐसे आरोपी के हौसले बुलंद हैं। कई मामले में तो भाजपा की
प्रवक्ता तक शामिल है. यह कोई पहला मामला नही आदिवासियों के संवेधानिक अधिकार के
लड़ाई को नक्सलवाद से जोड़ कर देखा जाता है, जब भी हक और अधिकार की बात हो नक्सलवाद
का अमली जामा पहना दिया जाता है. समुदाय के युवा वर्ग का कहना है कि कार्यवाही से
बचने के लिए नक्सल का नाम देकर सरकार अपनी मंशा जाहिर कर रही है अर्थात यह सब
टिप्पणी करने वाले सत्तासीन पार्टी के ही कार्यकर्ता हैं इसलिए दामन की दाग को
छुपाने का षड्यंत्र है लेकिन अब समाज को इनकी षड्यंत्र की जानकारी साफ हो चुकी है।
आदिवासी समाज के पवित्र गोटुल को लेकर भी अनर्गल टिप्पणी और मिथक कहानियो से
जोड़ के इसे तोड़ मरोड़ का परोसा जाते रहा है जिस पर कई दफे सामाज आक्रोशित होकर
विरोध जताते आया है. इस तरह आदिवासी समाज पर अनर्गल सामाजिक टिपण्णी नही रुकेगी तो
समाज सडक में उतरने को उतरने को मजबूर होंगे जिसके समय रहते कार्यवाही आवश्यक है
साथ ही समाज में कार्यवाही नहीं होने से सरकार पर आक्रोश बढ़ रही है। वहीं अन्य
समाज व सरकार समर्थित संघठनो पर की गई घटनाओं पर पुलिस द्वारा त्वरित कार्यवाही की
जाती है। इससे साफ होता है कि पुलिस व प्रशासन भी जातिगत कार्यवाही करती है जबकि
संविधान में दलित व आदिवासी समुदाय पर सर्वाधिक अत्याचार होने के कारण विशेष
संवैधानिक व क़ानूनन प्रावधान है। एक तरफ संविधान के प्रावधानों का सर्वाधिक
उल्लघंन पुलिस व प्रशासन पर ही लगती रही है।
खबर है कि पायल दास नाम के फेसबुक एकाउंट पर आदिवासी समाज को लेकर
आपत्तीजनक टिप्पणी तथा गाली-गलौच करने की शिकायत सर्व आदिवासी समाज ने थाने में की
है। आदिवासी समाज पदाधिकारियों ने कहा टिप्पणी करने वाले के खिलाफ तीन दिनों में
कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो आंदोलन किया जाएगा। पुलिस को सौंपे गए शिकायत
पत्र में उल्लेखित है की 6 सितंबर को
जब सर्व आदिवासी समुदाय पूरा बस्तर बंद की तैयारी में लगा था तब पुलिस के वरिष्ठ
अधिकारियों ने कहा था की पुलिस सोशल मिडिया पर भी नजर रख रही है। यह मामला प्रशासन
की पक्षपात कार्यवाही को उजागर करती है।
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