बस्तर के आदिवासियों ने छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक अमले को पढ़ाया भारत का संविधान
अनुसूचित क्षेत्र की प्रशासन संविधान में अनपढ़
अनुसूचित क्षेत्रों में संविधान उलंघन किया तो दर्ज करायेंगे राजद्रोह का मामला
नगरनार स्टील प्लांट की निजीकरण असंवैधानिक : सरकार प्रशासन ने 70 वर्षों तक छुपाये रखी अनुसूचित क्षेत्र की आदिवासियों की स्वायत्तता शासन व्यवस्था को
मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह आदिवासी सलाहकार परिषद का अध्यक्ष
कैसे उठाए सवाल?
बस्तर:- अनुसूचित क्षेत्र बस्तर के
आदिवासियों ने पढाया पुरे प्रशासनिक अमले को भारत का संविधान, जी हा समाज के बुजुर्गों, युवाओं के हाथ में संविधान की किताब और
एक ओर बस्तर के 7 जिलो के कलेक्टर, एसपी और बस्तर कमिशनर समाज प्रमुखों ने संवैधानिक प्रक्रिया के तहत
प्रशासनिक अमले को बस्तर जारी खूनी हिंसा, आदिवासियों पर अत्याचार, संवैधानिक प्रावधानों की प्रशासनिक अमले द्वारा उलंघन विभिन्न मुद्दों को
लेकर संवेधानिक हनन के चलते संविधान पढ़ाया, बस्तर संविधान में निहित पांचवी अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहा प्रशासनिक अमले के संविधान के
विपरीत कार्य करने को लेकर आदिवासी समुदाय नाराज व आक्रोशित हैं लेकिन बस्तर के
इतिहास में पहली दफा प्रशासनिक अमला और समाज का संवाद स्थापित हुआ जहा समाज के
पदाधिकारी व बुद्धिजीवी ने पूरी तरह संवेधानिक चर्चा को अंजाम दिया, संविधान के प्रावधानों की उलंघन के
कारण ही आदिवासी समाज पर अत्याचार शोषण व जल जंगल जमीन की लूट हो रही है यदि
प्रशासन इन प्रावधानों की पालन करती तो यह हालत नहीं होती। गोंडवाना समाज कांकेर
के जिला अध्यक्ष सुनहेर नाग ने कहा कि आजादी के 70 साल होने के बाद भी सरकार
प्रशासन पांचवी अनुसूची के प्रावधान को क्यों पालन नहीं कर रही है?? अनुसूचित क्षेत्र में भूमि का
हस्तांतरण असंवैधानिक है फिर भी आदिवासियों की जमीन किस अनुच्छेद अधिनियम के तहत
गैर आदिवासी कब्जा कर रहे हैं और प्रशासन मूक दर्शक बनी हुई है और राज्य सरकार
निरकुंश होकर आदिवासियों की विकास की ढिंढोरा पीट रही है। भूम मुदिया लिंगो गोटूल
ओड़मा माड़ के गोटूल लयोर जगत मरकाम ने प्रशासनिक अधिकारियों से जानना चाहा कि
अनुसूचित क्षेत्र में कोई भी सामान्य कानून पांचवी अनुसूची के पैरा 5 के अनुसार राज्यपाल के द्वारा बिना लोक
अधिसूचना के सीधे कैसे लागू किया जा रहा है?? इन क्षेत्रों में जब तक पारम्परिक ग्रामसभा की निर्णय के बिना कोई भी कानून
जो लोकसभा व विधानसभा में बनते हैं सीधे लागू नहीं होती। मरकाम ने सवाल किया कि
माननीय उच्चतम न्यायालय के पी रामी रेड्डी वर्सेज आन्ध्र प्रदेश फैसला 1988 के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में सरकार
एक गैर आदिवासी व्यक्ति है। जब सरकार एक गैर आदिवासी है तो वह अनुसूचित क्षेत्रों
में ग्रामसभा की निर्णय का पालन क्यों नहीं करती है। जमीन अधिग्रहण कानून अनुसूचित
क्षेत्रों में असंवैधानिक है फिर भी प्रशासन फ़र्जी या बन्दूक के नोक पर दबाव
पूर्वक प्रस्ताव पास करके असंवैधानिक जमीन हड़प रही है जिसके कारण आदिवासियों में
प्रशासन की क्रियाकलापों पर विश्वास उठती है। खबर है की संविधान में निहित
पांचवी अनुसूची की चर्चा के दौरान प्रशासनिक अमला पसीना पोछते नजर आए तो वही दूसरी
और समाज ने भी साफ कर दिया की अगर बस्तर में आदिवासियों के संवेधानिक अधिकार का
हनन होगा तो आदिवासी संवेधानिक लड़ाई का बिगुल फूकेंगे, संविधान के रक्षक राष्ट्रपति व
व्याख्याकार माननीय न्यायालय में याचिका लगाई जाएगी। परलकोट क्षेत्र के गोटूल
सिलेदार सुखरंजन उसेंडी ने कहा कि भारत मे संविधान ही सर्वोपरि है। न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका भी संविधान से
बड़ा नहीं है उन्होंने जयललिता प्रकरण में दी गई सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
भी अधिकारियों को दिया और कहा कि संविधान व माननीय उच्चतम न्यायायल के फैसलों को
नहीं मानने वाले अधिकारी कर्मचारी व्यक्ति संस्था राजद्रोह की श्रेणी में आते हैं
और इनके खिलाफ आईपीसी के धारा 124 क के तहत मामला दर्ज करवाया जायेगा। गोटूल लयोर उसेंडी ने प्रशासन से पूछा
कि अनुसूचित क्षेत्र में पूर्वी पाकिस्तान के अवैध घुसपैठी किस अनुच्छेद अधिनियम
के तहत शरण दिया गया है?? प्रशासन के पास इनकी जानकारी नहीं है जो बेहद संवेदनशील समस्या है यह बस्तर
के साथ ही साथ पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी सवालिया निशान है?? इतनी संवेदनशील मामले पर जिला प्रशासन
की चुप्पी भी संविधान के अनुपालन व निष्ठा पर सवाल खड़ा करती है। हालाँकि बस्तर में
आदिवासी संविधान और संविधान में दिए आधिकार को लेकर गभीर है, खबर है कि बस्तर कमिश्नर ने यह स्वीकार
किया कि पहली दफे कोई समाज संविधान को लेकर गहन चर्चा की, एक जानकरी के अनुसार चर्चा के दौरान
आदिवासी समाज ने प्रशासनिक अमले को संविधान का किताब भी वितरित किया गया
ताकि जो अफसर इससे अनभिज्ञ है वो पढ़े और आदिवासियों के संवेधानिक अधिकार का हनन न करे, आदिवासी सलाहकार परिषद का अध्यक्ष मुख्यमंत्री रमन सिंह को बनाये जाने पर भी सवाल खड़ा किया गया, आखिर एक आदिवासी को आदिवासी सलहाकार परिषद का अध्यक्ष कैसे बनया गया उक्त सवाल उत्तर बस्तर कांकेर जिले के चाराम ब्लाक के एक मांझी ने उठाया, तो वही नारायणपुर से सुमरे नाग ने आबुझमाड विकास परिषद को बंद करने अथवा माड में गैर आदिवासियों को प्रतिबन्ध लगाने को कहा उन्होंने कहा की माड में पांचवी अनुसूची के तहत गैर आदिवासी को रहने बसने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए अनेको सवाल समाज ने प्रशासनिक अमले के सामने खड़े किए जिसका जवाब में प्रशासनिक अमला सिर्फ पसीना पोछते नजर आया.
ज्ञात हो कि सर्व आदिवासी समाज के
नेताओं और प्रशासनिक अमले के बीच मंगलवार की दोपहर मैराथन बैठक हुई। बैठक का दौर 6 घंटे
लगातर जारी रहा बैठक पूर्णत संविधान के हनन को लेकर चर्चा की गई विदित हो कि पिछले
दिनों सर्व आदिवासी समाज ने अपनी विभिन्न मांगो और पांचवी अनुसूची क्षेत्र में
संविधान के विपरीत हो रहे कार्यो को लेकर बस्तर बंद अथवा आर्थिक नाकेबंदी की थी
जिस पर प्रशानिक अमले ने बैठक के लिए हाथ बढ़ाया था जिसमे बस्तर संभाग के 7 जिलो के
कलेक्टर, एसपी बस्तर कमिश्नर शामिल हुए । बैठक
के दौरान आदिवासी नेताओं ने साफ कर दिया कि यदि उनकी मांगें नहीं मांगी गईं तो
आर्थिक नाकेबंदी और फिर अलग बस्तर राज्य की मांग ही एकमात्र विकल्प बचेगा, हालांकि
प्रशासन के रूख के प्रति वे सशंकित दिखे। विदित हो की इससे पहले प्रशासनिक अमला
हमेशा चर्चा को लेकर भागते रहा है अरविन्द नेताम ने कहा की पहली दफा प्रशासनिक
अमला समाज के साथ संवाद स्थापित किया है जो स्वागतयोग्य है
जानकरी हो कि आदिवासी समाज पांचवी
अनुसूची कानून का कड़ाई से पालन नहीं करने और संवेधानिक अधिकारों का हनन मुख्य
मुद्दा था । बस्तर जिला के सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने नगरनार
स्टील प्लांट की निजीकरण को पूर्णतः असंवैधानिक है बताया क्योंकि माननीय सुप्रीम
कोर्ट के समता का फैसला, पी रामी रेड्डी का फैसला, वेदांता
का फैसला के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में जब कोई भी जमीन हस्तांतरण व लीज असंवैधानिक
है। जब जमीन ही नहीं है तब स्टील प्लांट कैसे निजीकरण या निजी स्वामित्व की होगी??? नगरनार
स्टील प्लांट को यदि सरकार निजीकरण करती है तो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले
जाया जाएगा और उपरोक्त फैसलों के आधार पर संवैधानिक हल निकाला जाएगा और समाज यह
दावा पेश करती है कि यदि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की प्लांट को सम्हाल नहीं सकती
तो सहकारी समिति के द्वारा संचालित करेगी। इसके अलावा पालनार घटना : 31 जुलाई को
दंतेवाड़ा के पालनार कन्या आश्रम में रक्षाबंधन पर कार्यक्रम में आदिवासी छात्राओं
से सुरक्षा बल के जवानों द्वारा छेड़छाड़ का आरोप है। मामले में 2 आरोपी जेल
में हैं।परलकोट घटना : 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर
आदिवासी समाज की रैली व सभा में पखांजूर में समुदाय विशेष के लोगों ने खलल डाला
था।विनिवेश : नगरनार में निर्माणाधीन स्टील प्लांट के विनिवेश के केन्द्र सरकार के
फैसले का समाज ने विरोध किया है। समाज का कहना है कि विनिवेश का फैसला बस्तर और
आदिवासियों के साथ धोखा है। इन सब मुद्दों से आदिवासी समाज काई नाराज था उनके
अनुसारे अगर बस्तर में पांचवी अनुसूची का कड़ाई से पालन होता तो यह सब घटनाए होती
ही नही प्रशासनिक अमला संविधान में निहित पांचवी अनुसूची के पालन को लेकर गंभीर
नही है वो माननीय न्यायलय के आदेशो की भी अनदेखी करता है जिसके चलते समाज को
आन्दोलन की स्थिति निर्मित करनी पढ़ी यही नही समाज आगे भी संविधान के पालन को लेकर
पूर्णत संवेधानिक लड़ाई रहेगा
आदिवासी समाज की ओर से चार प्रमुख
मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की
गई जिसमें पालनार में छात्राओं से छेड़छाड़ सहित नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण और
कांकेर जिले के परलकोट इलाके में अवैध रुप से रह रहे घुसपैठियों की पहचान कर उनके
खिलाफ कार्रवाई की मांग शामिल हैं। पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने कहा कि 1971 की स्थिति
में परलकोट में 933 परिवार शरणार्थी के रूप में तत्कालीन
पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। उन्हें उस इलाके के 133 गांवों
में बसाया गया था। उस समय इनकी आबादी 5 हजार के
आसपास रही होगी लेकिन आज इनकी संख्या डेढ़ लाख हो गई है। जनसंख्या में 300 फीसदी की
बढ़ोतरी समझ के परे है लेकिन इतना तय है कि इस इलाके में बड़ी संख्या में विदेशी
घुसपैठिये रह रहे हैं। इनकी पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
प्रशासन मांगों को लेकर संवेदनशील है
संभागायुक्त दिलीप वासनीकर एवं आईजी
विवेकानंद ने कहा कि प्रशासन समाज की मांगों को लेकर बेहद संवेदनशील है। संबंधित
जिले के कलेक्टर और एसपी की मौजूदगी में आदिवासी समाज का पक्ष सुना गया।
संभागायुक्त ने बताया कि विदेशी घुसपैठियों के संदर्भ में समाज प्रमुखों से
तथ्यात्मक जानकारी मांगी गई है। इनके खिलाफ एक्ट के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की
जाएगी।
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