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अर्जुन की हत्या डेमोक्रेटिक प्रोसेस को हथियारबंद चेतावनी है . हथियारों से हथियारों का मुकाबला ही उन्हें मुआफ़िक बैठता है.


वे संविधान और जनतांत्रिक प्रतिरोध के खिलाफ है .
(Lakhan Singh की कलम से )

पंद्रह अगस्त को बस्तर के एक गांव में बकरी चराते सत्रह साल के अर्जुन की हत्या सिर्फ फोर्स ने इसलिए कर दी क्योंकि ठीक उसी दिन गोमपाड में संविधान और तिरंगा लेके डेमोक्रेटिक तरीके से शांतिपूर्ण तरीके से पूरे देश से आये शांतिकामी लोग अर्धसैनिक बलों की हत्यारी मुहिम के विरोध में राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे.
बस्तर में पिछले कई महीनों से सरकार और फोर्स द्वारा की जा रही फर्जी मुठभेड़ और बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ धरना, प्रदर्शन ,सभाओं और रैली का दौर शुरू हुआ है ,जो विरोध के जनतांत्रिक और अहिंसक तरीके को व्यक्त करता है.
पिछले दो माह में उनमें से तीन घटना बहुत महत्वपूर्ण है .
1 . पुलिस की कार्यवाही के खिलाफ सर्व आदिवासी समाज ,सोनी सोरी और आदिवासी महासभा के आव्हान पर पूरा बस्तर संभाग स्वस्फूर्त बंद रहा ,व्यापारियों सहित सभी वर्ग ने इसका समर्थन किया ,यह बंद इस मामले में एतिहासिक था कि जिला ब्लॉक से लेकर गांव कस्बे तक बंद रहे.
यह प्रतिरोध अभी तक का सबसे बडा आंदोलन था।
इस बंद में मिले समथर्न ने सुरक्षा बलों और शासन की आंखें खोल दी.
2 . विश्व आदिवासी दिवस नौ अगस्त को महत्वपूर्ण प्रतिरोध हुये.
इस दिन पूरे संभाग में जिला ब्लॉक और तहसील स्तर पर बहुत बडी सभायें हुई ,एक एक सभा में पांच से आठ हज़ार तक आदिवासी एकत्रित हुये, अगर मोटा हिसाब लगाया जाये तो आदिवासी दिवस में चार से पांच लाख लोग इकठ्ठे हुये.
इन सभाओं में मूल विरोध था आदिवासियों के उपर हो रहे हिंसक हमले .
मेने खुद एसी करीब पांच सभायें देखी और उनके ताप को मेहसूस भी किया.
यह सभायें भी फोर्स और सरकार को बैचेन करने वाली थी.
3 , बस्तर में एक और बडी जनतान्त्रिक पहल होना बांकी थी.
पिछले माह सोनी सोरी ने लंबी पदयात्रा का एलान कर दिया था और सामाजिक संगठनों छात्र नौजवानों को इस पदयात्रा में शामिल होने का आग्रह किया.
बस्तर संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले प्रदेश के 24 जनसंठन और भाजपा कांग्रेस विहीन राजनैतिक दल इस यात्रा में शामिल हुये.
नौ अगस्त को दंतेवाड़ा में डा, अम्बेडकर की मूर्ति से प्रारंभ हुई यह पद यात्रा 180 किलोमीटर चल के पंन्द्रह अगस्त को गोमपाड पहुँच कर आजादी के बाद पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फैहराया.
हाथ में संविधान और कंधे पर तिरंगा लेके सोनी सोरी ओर कवासी हिडमें यात्रा का नेतृत्व कर रही थी.
यह यात्रा हर मामले में एतिहासिक सिद्ध हुई. इसमें पूरे देश से आये छात्र ,नौजवान और सामाजिक संगठनों के अलावा बडी संख्या में पत्रकार और राजनैतिक दल के लोग शामिल हुये.
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर और जीने खाने रहने लायक सुविधाओं से विहीन गाँव और रहवासी शायद पहली बार संविधान और तिरंगे से रूबरु हो रहे थे.
सरकार और फोर्स के पदयात्रियों के विरोध में भारी प्रचार ओर रोडा अटकाने के बाबजूद यात्रा सही और तय समय पर गोमपाड पहुची, वहाँ हिरमें की कब्र पर पुष्प अर्पित किये और ध्वजारोहण के बाद तिरंगे को गांव के लोगों को सोंप दिया.
बस्तर के पुलिस प्रमुख ने हर संभल पदयात्रा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया ,उनकी पूरी कोशिश रही कि इस यात्रा को सिर्फ माओवादियों के खिलाफ खडा कर दिया जायें .उनके और पुलिस संरक्षित संगठन अग्नि ने पहले विरोध फिर समर्थन और अंत मे हिसक हमले तक गये.
पदयात्रियों के संविधान ,तिरंगा , देशभक्ति और ह्दय परिवर्तन को लेके बार बार कमेंट किये गये और आखरी में सोनी पर हमला भी किया .
उनकी कोशिश थी कि यात्रा रास्ते में ही बंद कर दी जाये. उन्होंने पदयात्रा की सुरक्षा से पूरी तरह हाथ खींच लीये और कहा भी कि इन्हें सुरक्षा देने की कोई जरूरत नहीं है ।
वाकई हमें पुलिस सुरक्षा की कतई जरूरत भी नहीं थी.
लेकिन सुरक्षा के नाम पर यात्रा को डराने की कोशिश अनवरत जारी रही. पूरी यात्रा में पुलिस के कारिंदे लगातार आगे पीछे रहे जो पल पर की खबर अपने आकाओं को भेज रहे थे.
खेर .....


न तीनों घटनाओं ने सरकार को जनतांत्रिक तरीके अपनाने का नैतिक चैलेंज कर दिया था, इनका यही संदेश था कि सरकार और फोर्स संविधान के अनुसार काम करें, कानून का राज कायम हो .जिन सुविधाओं के यह लोग हकदार है वह इन्हें उपलब्ध कराई जायें हम ऐसा कुछ नहीं कह या मांग रहे थे जो कानून या संविधान के परे हों.
सभी आंदोलनों का यही संदेश था कि आदिवासियों को भारत के अन्य नागरिक की तरह जीने और रहने दिया जाये ,प्राकृतिक संसाधनों की कारपोरेटिक लूट को बंद करें और माओवादियों के नाम पर हत्या ,लूट और बलात्कार बंद हों, जो जघन्य अपराध में लिप्त है उन्हें सजा मिले और बेगुनाह आदिवासी जो जेलो में पडे है उन्हें रिहा किया जायें.
यही सब ह़क हमें संविधान देता है इसीलिए हमारे हाथ में संविधान है ,हमारा आव्हान है कि सत्ता के मद में डूबे सियासतदां लोग एक बार कानून तो पढ ले़.
** बस यही तो सरकार और पुलिसतंत्र नही चाहता.
कानून का पालन करोगे तो आपको कोर्ट को मानना पडेगा ,गेरकानूनी हत्यारी मुहिम और संस्थाओं को भंग करना होगा.
फर्जी रूप से मुठभेड़ के नामपर हत्यायें बंद करना होगी, बलात्कार ,महिलाओं का अपमान और गांव के गांव की
कानून मानेंगे तो हजारों बेगुनाह आदिवासियों को जेल से रिहा करना होगा और अंधाधुंध गिरफ्तारी से तौबा करनी पडेगी.
जल जंगल जमीन लोहा पानी और दूसरे प्राकृतिक संसाधन की लूट के लिये कारपोरेट की गुलामी बंद करनी पडेगी, कारपोरेट के लठैत की भूमिका में सरकार और फोर्स ऐसा करेगी तो फिर सैना की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी.
सवाल सिर्फ बस्तर का ही नहीं ,सरगुजा ,रायगढ ,जांजगीर में आप और आपकी सैना यही कर रही है .
लुटपाट ओर उजाडने की जिम्मेदारी तय करनी होगी , यह इन्हें मालूम है कि यदि ऐसा हुआ तो इनकी चूले़ हिल जायेगी.
** इसीलिए अर्जुन की हत्या इनका जबाब है

सरकार यही चाहती है कि बस्तर में ऐसे ही फोज बनी रहे ,फौज के औचित्य के लिये शशस्त्र प्रतिरोध बना रहना चाहिए ,फासिस्ट तरीका भी यही है कि यदि आपके सामने दुशमन नही़ है तो दुश्मन इज़ाद करो ताकि लड़ाई चलती रहे और लूट कायम रहे.
बस्तर में लगातार अन्याय के विरोध में जनतांत्रिक विरोध की गुंजाइश खतम करने के लिये है ही फोर्स और छत्तीसगढ़ सरकार ने ठीक पंन्द्रह अगस्त को ही एक एसे बच्चे की हत्या कर दी जो कोर्ट में नाबालिग सिद्ध होने और लगभग बेगुनाह पाये जाने पर जमानत पर रिहा होने और हर पेशी पर नियमित उपस्थित होने वाले अर्जुन की हत्या कर शांतिकामियों और जनतान्त्रिक कानून में भरोसा रखने वालों को खुली चेतावनी है ,कि बस्तर में ऐसे ही न्याय होगा ,.
हम हारेंगे नहीं ..
हम हारे नहीं है संवैधानिक तरीके से ही आताताइयों का मुकाबला करेंगे और आज कुछ हज़ार है कल लाख होंगे और फिर सब उठ खड़े होंगे ,निश्चित ही तुम्हारा अंत होगा क्योंकि इतिहास ने भी हमारी जीत ओर तुम्हारी हार तय कर दी है .

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