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बूमकाल जनआंदोलन ब्रिटिश काल में भी बना हुआ था थाना कुआंकोंडा




बस्तर में बूमकाल जन आंदोलन के कई प्रमाण आज भी जीवित हैं ,उनमे से आजाद हिंदुस्थान के 37 वर्ष पहले बना कुआकोण्डा थाना अंग्रेज काल का आज भी प्रत्यक्ष गवाह है। बताया जाता है कुआकोण्डा थाने की स्थापना 1910 की गयी थी,जिसकी ईमारत आज भी  कुआकोण्डा विकासखंड के हलबारास ग्राम में मौजूद है।इस भवन पर वर्तमान में समाजसेवी संस्था भारतीय कुष्ठ निवारक संघ कुछ वर्षो से डेरा जमा कर कार्य कर रही है।आज भी पुराने थाने से जुड़े कई रोचक तथ्य तत्कालीन बुजुर्गों के मुँह से सुना जा सकता है,जिनके पुरखे इस थाने से जुड़े घटनाक्रमों को बताते नहीं थकते थे।ग्राम हलबारास के 75 वर्षीय बुजुर्ग रिटायर्ड शिक्षक जयसिंह नाग बताते हैं,जिस दौरान बस्तर में  भूमकाल  जनआंदोलन की आग भड़की थी उस दौर में भी यह थाना अस्तित्व में था।बस्तर में जगह-जगह आदिवासी भूमकाल जन आंदोलन के नाम पर परांपरिक हथियारों से लैस होकर एक स्वर में लामबंध हुए थे।उस दौरान इस थाने में भी अंग्रेज हुकूमत के एक सिपाही को आन्दोलनरत ग्रामीणों ने आग में जिन्दा जला डाला था। बतौर नाग आंदोलन के नाम से दूर-दूर से आदिवासी पारंपरिक हथियारों से लैस होकर तत्कालीन कुआकोण्डा थाने का घेराव कर रहे थे,उस वक़्त अंग्रेज सिपाहियों ने ग्रामीणों को रोकने की भरसक कोशिस की पर ग्रामीणों के आगे उनकी एक न चली,इसी बीच एक अंग्रेज सैनिक को ग्रामीणों ने जिन्दा जला दिया था। श्री नाग आज भी उनके पुरखों द्वारा बताये गये घटनाक्रमों को याद करते हैं।उनके किस्से कहानियों की फेहरिस्त लंबी है।यहाँ यह बताना लाजिमी है कि तत्कालीन कुआकोंडा थाना की  वृहद सीमायें थीं। जगरगुंडा,भांसी,सुकमा,दोरनापाल तक इसी थाने के अंतर्गत आते थे।यही वजह है कि आज भी  कुआकोण्डा को 84 परगनों के केंद्र बिंदु के नाम से जाना जाता है।वर्तमान में तत्कालीन कुआकोण्डा थाने को हलबारास से हटा कर 2/10/1988 में नवीन भवन बनाकर करीब 4 किलोमीटर दूर नकुलनार में दंतेवाड़ा-सुकमा मुख्यमार्ग में स्थापित किया गया था। जहा आज भी इस थाने की पहचान कुआकोण्डा के नाम से ही की जाती है,परंतु तत्कालीन कुआकोंडा थाने का हलबारास में मौजूद भवन आपने आप में कई घटनाओं,परिवर्तनों का गवाह रहा है। आज भी पुराने बने हुए थाना भवन में बन्दीगृह जीवित है  साथ शस्त्रग्रह भी आसपास का पूरा परिसर  इतिहास की पुनर्वृत्ति दोहराते नजर आते है थाना भवन के पास ही बने हुए कई भवन 100 साल पुराने आज भी दीखते है जिसमे समाजसेवी संस्था सुधार कार्य करके डेरा जमाये हुए है


यह रिपोर्ट बस्तर के जुझारू, सवेदंशील पत्रकार (पंकज सिंह भदौरिया) की है पंकज हरिभूमि समाचार पत्र में सवाददाता है और नियमित रूप से लिखते है 

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