आखिर कब तक होता रहेगा आदिवासी बालाओं का पलायन और शोषण?
"ग्राम
चागोड़ी में न बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा मौत की भेट चढ़ गई आदिवासी बाला बसंती अब भी
दयाबती,सनबत्ती,पोपत्ति लच्छो मिल प्रबंधन के कब्जे में आदिवासी बालाओ अस्मिता, सम्मान अब भी
खतरे में"
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आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में आशिक्षा और मूलभूत सुविधावो के आभाव में
नवजवान युवक-युवतियाँ रोजगार की तलाश में दलालों के मध्यमो से दुसरे
शहरो,प्रान्तों की पलायन निरंतर जारी है| कई फैक्ट्रिया, राईस मिल , इट के भट्टो
और शहर में संचालित अनेक लघु उद्योगों में मजबुरनवश झासे में ये काम करते / करती
है | अधिकतर युवक बोरवेल्स की गाडियों में
काम करने के लिए पलायन का शिकार होते है वही दूसरी और युवतियाँ राईस मिल शहर में
संचालित निजी लघु उद्योगों में काम करने को मजबूर होते है |
कम मजदूरी में
अच्छा मजदुर इन निजी प्रबंधनो को को आसानी से मिल जाता है बस उन्हें दलाल से
संपर्क करना पड़ता है दलाल आदिवासी अन्दुरुनी गावो में भ्रमण कर ज्यादा पैसे का
लालच दिखा झांसे में आदिवासी युवक /युवतियों को ले लेते है | आशिक्षा और जागरूकता
न होने के चलते दलालों के झांसे में फस जाते है | जहा उनका मानसिक, शारीरिक शोषण
और अनेक यातनाये देते हुए उनसे काम लिया
जाता है |
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बसंती के मौत के बाद परिजनों और ग्रामीण |
एक ऐसा ही दुर्रभाग्यजनक
घटना उत्तर बस्तर कांकेर जिले के आदिवासी बाहुल्य आमाबेडा क्षेत्र अंतर्ग्रत चांगोडी
ग्राम में रहने वाली बसंती कोमरा के साथ घटित हुए घटने में मृत्यु को प्राप्त हो
गई ...आशिक्षा,जागरूकता,और मुलभुत सुविधावो के आभाव में घर से रोजगार की तलाश में
धमतरी के शारदा राईस मिल में गाव से पलायन कर चुकी बसंती प्रबंधन की लापरवाही और
शोषितकार्यो की वजह से मौत के मुह में समा गई | बसंती आमाबेडा क्षेत्र के चांगोडी ग्राम की रहने वाली थी, जो बचपन से पाठशाला का
मुह भी नहीं देख पाई थी चांगोडी ग्राम में कई लडकियों काम करने के लिए गाव से
पलायन कर चुकी है| ( हालाँकि दलालों के भूमिका से इनकार
नहीं किया जा सकता जो प्रबंधन को कम मजदूरी में में उचित शोषण युक्त मजदुर उबलब्ध
करा देते है|) अपने अन्य सहेलियों को गाव से काम के लिए पलायन करता देख बसंती भी काम के लिए धमतरी स्थित शरदा राईस मिल
में काम करने के लिए अपने परिजनों को बिना बताये निकल पड़ी (बसंती को क्या मालूम था की यह काम एक दिन उसे मौत के मुह में ले जाएगा|) बसंती
को सप्ताह भर ही हुए थे शारदा राईस मिल में काम करते, जहा मशीन के पट्टे में हाथ
फस जाने के कारण वो गंभीर रूप से घायल हो गई, घायल व्यवस्था में रायपुर एमएमआई
अस्पताल में भर्ती किया गया| 9 जुलाई को मिल का मुंशी चांगोडी गाव पहुचा उसने पिता
रामदयाल व चचेरे भाई मनाऊराम को बताया की बसंती बीमार है मुंशी उन्हें लेकर धमतरी
आया और फिर जानकारी दी की वह रायपुर के एमएमआई अस्पताल में भर्ती है, परिजनों के
अस्पताल पहुचने पर भोचके रह गए बसंती अस्पताल में अंतिम साँस गिन रही रही थी शरीर
चोटों से भरा हुआ था ( साफ जाहिर हो रहा था की प्रबंधन द्वारा परिजानो को गुमराह
किया जा रहा था) ) 6 दिनों तक जब युवती के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं आया तो सातवें
दिन 15 जुलाई को दोबारा मिल मालिक
अस्पताल पहुंचा और बसंती के जिंदा नहीं बचने की जानकारी देते उसे वापस घर ले
जाने कहा। साथ ही उसके अंतिम संस्कार के लिए पिता के हाथ में पांच हजार रूप रख
दिए।
आनन फानन
में आईसीयू में अंतिम सांसें गिन रही बसंती कोमरा को अस्पताल से निकाल चंगेड़ी के
लिए रवाना कर दिया गया। बुधवार रात 9 बजे परिजन उसे लेकर अस्पताल पहुंचे जहां उसकी सांस तो चल रही
थी। वाहन से उतार इलाज के लिए जैसे ही कमरे तक पहुंचाया गया उसने दम तोड़ दिया।
मामला संदिग्ध होने के कारण जिला अस्पताल ने इसकी सूचना कांकेर पुलिस को दे दी।
सुबह युवती का पोस्ट मार्टम कर शव परिजनों को सौंप दिया गया।
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बसंती का भाई |
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पपोत्ति साल साड़ी में खडी मिल प्रबंधन के कब्जे में |
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पिछले एक वर्ष से नहीं आई घर लच्छो |
शारदा राईस मिल के मुंशी के अनुसार
तीन फिट गहरे गड्डे में गिरने के चलते चोट लगने के कारण बसंती की मौत का कारण
बताया जा रहा है, लेकिन परिजनों के आरोप के अनुसार तीन फिट गहरे गड्डे में गिरने
से क्या सर,जांघ,कंधे टुटा हुआ है तीन फिट गहरे गड्डे से गिरने से इतनी चोट शरदा
राईस मिल प्रबंधन संदेह के दायरे में आता है परिजानो और प्रत्यक्षदर्शियो के आरोप
के अनुसार बसंती के साथ मिल में शोषण भरा काम हो रहा था| परिजानो के अनुसार बसंती
का नाम मिल प्रबंधन द्वारा सरोज रख लिया गया था अस्पताल में भी सरोज नाम से भर्ती
किया गया था मिल प्रबंधन पूरी तरह संदेह के दायरे में आ रहा है वही अभी ग्रामीणों
से मिली जानकारी अभी भी चार लडकिया शारदा राईस मिल में आघोषित रूप से कब्जे में है
परिजनों के अनुसार युवतियों से मोबाईल छीन लिया गया है जिससे उनसे संपर्क नहीं हो
पा रहा है वो किस हालत में कैसे है परिजनों को जानकारी नहीं है ग्राम चागोड़ी की
चार अन्य लडकिया जिनका नाम दया बती कोमरा, 18 वर्ष ,सनबती 20 वर्ष, पोपात्ति 20
वर्ष, लाछो कोमरा 18 वर्ष जिसमे से लच्छो पिछले 1 वर्ष से अधिक समय से मिल में काम
कर रही है|
जिला जिला कलेक्टर श्रीमती शम्मी से इस
घटना के सम्बन्ध में चर्चा करने पर उन्होंने जाँच करवाने की बात कही है |
गरीबी
से पैदा हुए हालत का फायदा उठाकर अपना हित साध रहे सैंकड़ो दलाल आदिवासी
बालिकाओं को महानगरों और नगरो के अंधी गलियों व नरक में ढकेल रहे हैं। जहाँ
उनकी जिन्दगी हर तरह की यातना की जीती-जागती तस्वीर बनकर रह जाती है। क्या आदिवासी
बालाओं का पलायन और शोषण इसी तरीके से होता रहेगा? वे आदिवासी जो कभी अपने मेहनत और परिश्रम से जंगलों, पहाड़ों
और पेंड़-पौधों को काँट-छाँट कर अपने रहने लायक बनाया, खेत
बनाया, जगह-जगह गाँव और शहर
बसाया। आज वे ही लोग इतने बेबस और लाचार हो गये हैं, जो दो जून की रोटी जुटाने के लिए अपनी
मान-मर्यादा का ख्याल रखे बिना किसी दूसरे जगह में पलायन कर रहे हैं, और अपने साथ-साथ पूरे आदिवासी समाज के ऊपर मटिया पलित कर रहे हैं। कैसे
माँ-बाप हैं वे लोग, जो लड़की पैदा करने के बाद कर्तव्य की
अनदेखी करते हुए अपनी फूल से बेटी को मुरझाने के लिए अंधी गलियों में फेक देते
हैं।
आखिर कब तक होता रहेगा आदिवासी बालाओं का पलायन और शोषण? सबसे पहले तो आदिवासी समाज के पढ़े-लिखे
बुद्धिजीवी व प्रबुद्ध लोगों को समाज के सामने आकर लोगों में चेतना व आत्म सम्मान
की भावना जागृत करनी होगी। विभिन्न सामाजिक संगठनों तथा गैर सरकारी संस्थाओं के
माध्यम से भी विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा पलायन रोकने, रोजगार सुनिश्चित करने तथा आदिवासी बालिकाओं के मध्य सुशिक्षा स्थापित
करनी होगी। केन्द्र और राज्य सरकार को भी आदिवासी युवक-युवतियों के पलायन की
रोकथाम हेतू "पलायन निरोधक कानून" बनाकर ठोस कदम उठानी चाहिए तथा
आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार और विकास की गारिण्टी हेतू
कारगार व विशेष कार्यक्रम संचालित करनी चाहिए; तभी
आदिवासियों की अस्मिता, सम्मान व संस्कृति को संरक्षित
किया जा सकता है।
चंगोड़ी से लोटकर तामेश्वर सिन्हा
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