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1983 के प्राइमरी स्कूल ग्राम रावस में 6 खिडखी, 4 दरवाजे, और 25 सीमेंट के छज्जा; हो गया 2 लाख 67 हजार का मरम्मत कार्य...


कांकेर- ना पानी, ना बिजली और ना भवन फिर कैसे बढेगे छत्तीसगढ के स्कूली बच्चे और कैसे गढगें अपना भविष्य ? कांकेर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर बांसपत्तर ग्राम पंचायत का आश्रित ग्राम रावस में स्कूली बच्चे शिक्षा से अपना भविष्य गढने की छत्तीसगढ शासन- प्रशासन की योजना ढकोसला साबित हो गई है। 
      ज्ञात हो कि सुदूर अंचल में केशकाल और कांकेर की सिमा में बसा ग्राम रावस में मिडिल और प्राईमरी स्कूल में कुल 100 बच्चे अध्यन


रत है। पिढियों से बनी छोपढ पटटी स्कूल को रावस के ग्रामीणों ने शासन- प्रशासन को काफी मान मनौवल गुहार लगाने के बाद मरम्मत का आदेश  दिया। मरम्मत के लिए 2 लाख 67 हजार लगभग का मरम्मत कार्य बाीआरसी नरहरपुर द्वारा किया जाना था, जिसे बाीआरसी द्वारा मरम्म्त कार्य को ग्राम पंचायत को सौप दिया गया। छोपडपटटी स्कूल को फरवरी 2013 में उझाड कर मरम्मत का काम शुरू किया गया। लगभग 2 लाख 67 हजार के मरम्मत कार्य में 6 खिडखी, तीन लोहे के दरवाजे, 10 बोरी सिमेंट और सीमेंट का 20 से 25 छज्जा लगाया गया और 2 लाख 67 हजार का मरम्मत काय पूर्ण हो गया। चित्र में साफ नजर आ रहा है कि षिक्षा के नाम पर लाखों रूपये के प्रशासन द्वारा क्या खेल खेला गया है।
          जनकारी हो कि अब ग्राम रावस के प्राइमरी स्कूल के बच्चे मिडिल स्कूल के बच्चों के साथ बैठ कर पढाई करते है। मिडिल स्कूल में कुल 5 रूम तथा लगभग 50 छात्र अध्यन करते है, उसमें प्राइमरी स्कूल के लगभग 50 बच्चों को मिडिल स्कूल के बच्चों के साथ भेंड-बकरियों की तरह ढूंस कर शिक्षा ग्रहण करने में मजबूर है।
         और ऐसे में 2014 का नया शिक्षा सत्र शुरू  हो गया है, नये शिक्षा सत्र के लिए राज्य सरकार ने नारा दिया है, जिंदगी ला गढे बर, स्कूल जाबों पढे पर। लेकिन 2014 का स्कूली शिक्षा सत्र रावस ग्राम के स्कूली बच्चों के लिए भश्टाचार, से शुरू  हुई है। शासन- प्रशासन  की नऐ शिक्षा  सत्र में जो तैयारियां है उससे तो उददेष्य पर ही सवाल खडे हो रहे है। 

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