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श्रम दान से चट्टानों को तोेड.... ग्रामिणों ने बनाई16 किमी सड़क


रावास के ग्रामीण 





सड़क जिसे बनाया गया 

 रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां है ‘‘मानव जब जोर लगता है, पत्थर भी पानी बन जाता है’’ कहते है न अगर मन में जज्बा हो तो दुनिया की कितनी ही कठनाईयों का मुकाबला कर अपना अलग ही मुकाम बनाया जा सकता हैेे एक ऐसा ही मुकाम बनाया है कांकेर  जिला मुख्यालया  से 45 किमी दूर बांसपत्तर से 18 से 19 किमी लगभग पहाड़ी में बसा ग्राम रावस,आमापानी और राउतपारा के ग्रामिणों ने जिन पर दिनकर की पक्तियां  बैठता है, यह के ग्रामिणों ने श्रम दान से बडे-बडे चट्ठानों को काटकर 16 किमी लम्बी सड़क का निर्माण कर डाला, अब बिहड़ गांव आमापानी, रावस, रावतपारा जाने का मार्ग प्रषस्त हो गया। ग्रामिणों के आंखों में एक चमक आ गई। ज्ञात्वय हो कि इन तीन गांवों तक जाने के लिए पहुंच मार्ग नही था, बीहड़ पहाड़ में बसे

आमापानी,रावतपारा, रावस बासपत्तर से 19 किमी लगभग पहाडी में होने के कारण वाहन नही जा सकते थे, षासन के महत्वकांक्षी योजना पीडीएकस के लिए 19 किमी लगभग सफर तय करना पड़ता था, स्वास्थ्य सुविधा के लिए चलायें जा रहे 108 संजिवनी सेवा के लिए पहले 19 किमी बांसपत्तर में लाना पड़ता था। सड़क के अभाव में यह की मरिजों की मौत आम बात थी। ग्रामिणों ने क्षेत्र के जनप्रतिनिधि, षासन-प्रषासन से कई बार गुहार लगाई लेकिन किसी ने ध्यान नही दिया।कांकेर  जिले के प्रशासन  का एक भी नुमाइंदा इस गांव में सड़क के अभाव में नही पहुंचे।  बाध्य होकर ग्रामिणों ने श्रमदान से सड़क बनाने की निर्णय लिया। बडे-बडे चट्टानों को तोड़ते, कुदाली, फावड़ा और श्रम दान से तीन गांव के ग्रामवासियों ने 16 किमी लम्बी सड़क का निर्माण कर मिशाल कामयाब कर दिया।


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