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आरटीआई कानून: क्या भारत की कानून को सीधी चुनौती ?




माजारा समक्ष नही आया 
कांकेर । विगत दिनों 30 नंवबर 2012 को एक जाने माने अखबार ने ‘‘समाचार का प्रकाशन कर जिले के विभिन्न ग्राम पंचायतों के सचिव, सरपंच एवं शासकीय अधिकारियों (जो भ्रष्ट हैं) को एक तरह से संरक्षण देने का कुत्सित प्रयास किया गया है । लगता है इस अखबार को यह नहीं मालूम है कि देश में जब से आरटीआई कानून बना है तब से आज तक कई दर्जनों आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है, कई पर गंभीर जानलेवा वारदातें हो चुकी है। इन आरटीआई कार्यकर्ताओं ने बड़े-बड़े काण्डों, घोटालों, भ्रष्टाचार का रहस्य उजागर किये थे । चिरमिरी के आरटीआई कार्यकार्ता राज मिश्रा को विभिन्न शासकीय विभागों के कर्णधार भ्रष्ट अफसरों द्वारा लगातार धमकाया जाता रहा, कभी राह चलते धमकी मिलती तो कभी धमकी भरी चिठ्ठी आती । राज ने थाने में रिपोर्ट भी दर्ज कराई, लेकिन अपेक्षित कार्रवाई नहीं हुई । उनके द्वारा हाईकोर्ट की शरण लेने पर ही उनकी सुरक्षा के लिए गनमैन दिया गया । अभी हाल ही में 27 नवंबर 2012 को एक आरटीआई कार्यकर्ता डी.के. सोनी पर जानलेवा हमला किया गया । श्री सोनी पेशे से अधिवक्ता है तथा छ.ग. आरटीआई एक्टिविस्ट एसोसियेशन के सदस्य भी हैं । डी.के. सोनी ने अंबिकापुर- मैनपाट सड़क निर्माण संबंधित जानकारी लोनिवि कार्यालय से मांगी जिसके एवज में लोनिवि में संविदा पर कार्यरत दिनेश राजवाड़े ने अपने चार अन्य साथियों से मिलकर सोनी पर जानलेवा हमला किया । 
इस अखबार में प्रकाशित खबर के संबंध में हमारे संवाददाता ने जिले के आरटीआई कार्यकर्ताओं, शासकीय अधिकारियों से सम्पर्क कर उनकी राय लिया । एक आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि यह खबर केवल कुछ सरपंच, सचिवों तथा भ्रष्ट अफसरों को खुश करने की नीयत से छापी गई है । इस तरह की मनगढ़ंत खबरे बिना किसी आधार के छापने से उन आरटीआई कार्यकर्ताओं को हानि होती है जो इस कानून का ईमानदारी से उपयोग करते हैं ।  एक अन्य दूसरे आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि उक्त प्रकाशित खबर ने जनता को यह बताया है कि आरटीआई कानून लागू होने के बाद सबसे अधिक प्रताड़ित जिले के कांकेर ब्लॉक एवं नरहरपुर ब्लाक के सरपंच हो रहे हैं । यहां गौर करने वाली बात यह है कि एक दिन पहले कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखण्ड के ग्राम पंचायत नारायणपुर के सैकड़ो ग्रामीणों ने जिला कार्यालय पहंुचकर ग्राम पंचायत सरपंच द्वारा किये गये लाखों रूपयों की अनियमितता की शिकायत अपर कलेक्टर एमएल सिरदार तथा जिला पंचायत सीईओ भीमंसिंह से कर उन्हें ज्ञापन सौंपा ।
इस तरह जिले के नक्सल प्रभावित गांव के एक सरपंच का यह प्रसंग उक्त छपी खगर के पूर्णतः निराधार होने की पुष्टि करती है कि कैसे एक ग्राम पंचायत का सरपंच जो करोड़ो रूपयों की हेरा-फेरी करता है वह किस तरह से इस कानून से प्रताड़ित है, यह समझ से परे है ।

1 comment:

  1. आर टी आई के खिलाफ समाचार लिखने वाले अक्सर वे CHOR किस्म के पत्रकार होतें है जिन्हें लगता है कि अनियमितताओं के उजागर होने से ना केवल उनकी सांठ -गांठ की पोल खुलेगी बल्कि उनका हिस्सा भी कम हो जायेगा । मेरा विचार है की ज्यादा से ज्यादा लोग आर टी आई का प्रयोग करें , अनियमितता को उजागर करें । अगर उजागर करने का हिम्मत नहीं जुटाते तो गोल-माल में हिस्सा बँटाये । जनता के हिस्से के घोटाले में ज्यादा से ज्यादा लोगों के हक़ { ब्लेकमेल नहीं } मांगने से ही भ्रष्ट्राचारियों की फटेगी , ---- और किसी कानून या किसी चीज का परवाह तो इन्हें है नहीं । मेरा नारा है --- ब्लेक करो मत , ब्लेक होने से डरों मत । अगर एक हजार भी खाया है , तो दस हजार बाँटने के लिए तैयार रहो । पुलिस और कानून को भी सुचना का अधिकार के मामले में ब्लेक मेल की शिकायत पर अपने हिस्से से ही मतलब रखना चाहिए , कोई कारवाही की जरुरत नहीं है । इस कानून का ज्यादा से ज्यादा दुरपयोग ही भ्रष्ट्राचार पर लगाम लगा सकता है । इसके खिलाफ जाने वाले दुखी पत्रकार देशद्रोही हो सकते है , उनकी परवाह ना करें ।

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